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कविशाला संवाद 2021 :इरा टाक - 'मैं, 'हम' और 'हिंदी'

Kavishala InterviewsKavishala Interviews October 12, 2021
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आधी बीत गयी ज़िन्दगी कोमुड़ कर देखने में

बाकी आधी गँवा दी

जिन को लेकर रोया

और जिनको लेकर खुश था

सब तो उधर ही छूट गया..

ले आया मैं दर्द

और पछतावा

अपनी आत्मा में समेटे हुए !

-इरा टाक


कविशाला संवाद कार्यक्रम में जुड़ी मशहूर चित्रकार ,लेखिका ,कवि और  फिल्म निर्देशक इरा टाक ,जिनकी दो शार्ट फिल्म्स फ्लिर्टिंग मेनिया और रैंबो को लन्दन की शॉर्ट्स टीवी कंपनी रिलीज़ करने जा रही है। इसके अलावा  इरा टाक चार शॉर्ट्स फिल्म बना चुकी हैं। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कई मसलों पर अपने विचार रखे और आज कल प्रचलितऑडियो प्लेटफॉर्म्स पर अपने विचार रखे। 


आज लेखनी और कला के दो मोर्चो पर आप एक साथ कार्य कर रही हैं,इस यात्रा की शुरुआत के बारे में कुछ बताएं?


इरा टाक : मुझे लगता है मैंने रंगो और शब्दों को नहीं चुना बल्कि उन्होंने मुझे चुना है ,मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं लेखिका या चित्रकार बनूँगी शायद ये मेरे प्रारब्ध में ही था। मैं अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी ऐसे में अपनी भावनाओं को चित्र के ज़रिये उतार दिया करती थी अपने बातों-विचारों को डायरी में लिख लिया करती थी ,हालाँकि जैसा कि मैंने बताया भी मैंने कभी नहीं सोचा था की मैं चित्रकार या लेखक बनूँगी। इसके बाद २०११ में मैंने अपनी कुछ पेंटिंग सोशल मीडिया पर डाली जहाँ से एक अमेरिका में बिक गयी तो वो मैं कहूँगी मेरे जीवन का एक टर्निंग पॉइंट रहा। २०१२ में मेरी किताब प्रकाशित हुए और लेखनी का सिलसिला बढ़ता गया। चित्र कला लेखनी और फिल्म निर्देशन ये सारे कहीं न कहीं एक माध्यम से जुड़े हैं तो मुझे लगा फिल्म भी एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये मैं अपने विचारों को सामने ला सकती हूँ इसलिए मैं फिल्मों में आई


मैम ,जैसा की आपकी पहली ही कला सोशल मीडिया के जरिये अमेरिका में बिकी और यह सफर शुरू हुआ। तो सोशल मीडिया को आज के वक़्त में आप किस तोर पर देखती हैं ?


इरा टाक :मैं मानती हूँ ये एक बहुत अच्छा माध्यम है ज़यादा से ज़यादा लोगो तक पहुँचने के लिए। अगर हमारे कार्य में रचनात्मकता है तो हमारी कृति हर दिशा में पहुँच सकती है। मुझे लगता है अगर सोशल मीडिया का प्रयोग सही तरीके से किया जाये तो इससे बेहतर कोई माध्यम नहीं है अपनी रचना को अलग-अलग लोगो तक पहुँचाने के लिए।


आज के समय में युवाओं में डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति देखी जाती है ,आपके जीवन में भी एक व्यक्त ऐसा आया जब आपने कैंसर जैसी बिमारी का सामना किया ,मैंम हिंदी साहित्य कैसे मदद कर सकता है युवाओ को इस डिप्रेशन की स्थिति से बहार निकलने के में ?


इरा टाक :मुझे लगता है इस स्थिति के उत्पन होने का सबसे बड़ा कारन है हम खुद,क्योंकि हम खुद क्या करना चाहते हैं उससे ज़यादा हम दूसरे लोगो को खुद को दिखाने का प्रयास करते हैं और नकारात्मकता से घिर जाते हैं जो नहीं करना चाहिए। अगर ऐसी किसी परिस्थिति में आप चले जाते हैं तो जरुरी है आप अच्छी किताबें पढ़े जो आपको सकारात्मकता दें ,क्यूंकि पढ़ने पर आपकी दृष्टि खुलेगी और मुझे लगता है ऐसी स्थिति में अच्छे दोस्तों और परिवार का साथ होना बहुत जरुरी है।


जैसा की आप भी कई ऑडियो प्लेटफॉर्म्स में कार्य कर रहीं हैं ,जहाँ लोग कहानियों को सुनते हैं ऐसे में जहाँ एक परंपरा थी कहानिओं को पढ़ने की ,जो बदल रही है इस बदलाव को आप कैसे देखती हैं हिंदी के भविष्य के लिए


इरा टाक :मुझे लगता है हर दौर में परिवर्तन आता है एक जमाना था जब कहानियां केवल सुनाई जाती थी ,कहानिओं के रूप बदलते हैं ऑडियो प्लेटफार्म भी कहानिओं का ऐसा ही एक बदलता रूप है तो मुझे नहीं लगता इससे भाषा कमजोर होगी इससे मैं मानती हूँ हिंदी की और पहुँच होगी लोगो तक। 


 

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