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कविशाला संवाद 2021 : हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है।-प्रभात रंजन

Kavishala InterviewsKavishala Interviews October 11, 2021
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हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है।

-प्रभात रंजन 


पिछले दस वर्षों से ऑनलाइन साहित्य वेबसाइट jankipul.com चला रहे हिंदी उपन्यासराकर एवं कथा लेखक प्रभात रंजन कविशाला द्वारा आयोजित कविशाला संवाद का हिस्सा बने जहाँ हिंदी से जुड़े मुद्दों और साहित्य के आने वाले भविष्य पर अपनी बात रखी।आपको बता दें वर्तमान में प्रभात रंजन जाकिर हुसैन कॉलेज में अध्यापन का कार्य भी कर रहे हैं इसके साथ-साथ एक अनुवादक भी हैं। 



सर ,आप कहते हैं हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है ,इस पर कुछ बताएं !


प्रभात रंजन : ये बात कहने और सुनने में हो सकता है चौकाने वाली लगे पर समझने की बात है जो भाषा इस देश में लगभग ५५ करोड़ लोगो की बोल चाल की भाषा हो उसका मुकाबला किसी अन्य भाषा से कैसे हो सकता है। हिंदी अपने आप से संघर्ष कर रही है ,देश की सबसे ज़यादा बोली जाने वाली भाषा होने के बावजूद हिंदी अपने अंतर्द्वंद्वों से घिरी है। हिंदी में दो तरह की हिंदी हमेशा रही है एक लोगो द्वारा बोल चाल की भाषा में प्रयोग की जाने वाली हिंदी वहीँ दूसरी गंभीर हिंदी या अकादमी हिंदी और इन दोनों ही हिंदी का आपस में कभी संतुलन नहीं बैठ पता इसलिए मैंने कहा था हिंदी का मुकाबला स्वयं हिंदी से है।


सर,एक लेखक के रूप में आपका जनन कैसे हुआ कोई प्रेरणा श्रोत रहा या कोई विशेष कारन इस यात्रा को शुरू करने का?


प्रभात रंजन :मैं सीतामढ़ी का रहने वाला हूँ जो माना जाए तो काफी पिछड़ा छेत्र है वहां रहते हुए मैंने कई लेखकों के बारे में जाना रामचंद्र चंदभूषण एक कवि जो वैसे तो कलेक्टेरियट में क्लर्क थे पर उनके द्वारा लिखी कविताएं उस समय देश के हर पत्रिकाओं में छपा करती थी जिन्हे देख कर मैं बहुत प्रभावित

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