
कविशाला संवाद 2021 : हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है।-प्रभात रंजन

हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है।
-प्रभात रंजन
पिछले दस वर्षों से ऑनलाइन साहित्य वेबसाइट jankipul.com चला रहे हिंदी उपन्यासराकर एवं कथा लेखक प्रभात रंजन कविशाला द्वारा आयोजित कविशाला संवाद का हिस्सा बने जहाँ हिंदी से जुड़े मुद्दों और साहित्य के आने वाले भविष्य पर अपनी बात रखी।आपको बता दें वर्तमान में प्रभात रंजन जाकिर हुसैन कॉलेज में अध्यापन का कार्य भी कर रहे हैं इसके साथ-साथ एक अनुवादक भी हैं।
सर ,आप कहते हैं हिंदी का मुकाबला अंग्रेजी से नहीं स्वयं हिंदी से है ,इस पर कुछ बताएं !
प्रभात रंजन : ये बात कहने और सुनने में हो सकता है चौकाने वाली लगे पर समझने की बात है जो भाषा इस देश में लगभग ५५ करोड़ लोगो की बोल चाल की भाषा हो उसका मुकाबला किसी अन्य भाषा से कैसे हो सकता है। हिंदी अपने आप से संघर्ष कर रही है ,देश की सबसे ज़यादा बोली जाने वाली भाषा होने के बावजूद हिंदी अपने अंतर्द्वंद्वों से घिरी है। हिंदी में दो तरह की हिंदी हमेशा रही है एक लोगो द्वारा बोल चाल की भाषा में प्रयोग की जाने वाली हिंदी वहीँ दूसरी गंभीर हिंदी या अकादमी हिंदी और इन दोनों ही हिंदी का आपस में कभी संतुलन नहीं बैठ पता इसलिए मैंने कहा था हिंदी का मुकाबला स्वयं हिंदी से है।
सर,एक लेखक के रूप में आपका जनन कैसे हुआ कोई प्रेरणा श्रोत रहा या कोई विशेष कारन इस यात्रा को शुरू करने का?
प्रभात रंजन :मैं सीतामढ़ी का रहने वाला हूँ जो माना जाए तो काफी पिछड़ा छेत्र है वहां रहते हुए मैंने कई लेखकों के बारे में जाना रामचंद्र चंदभूषण एक कवि जो वैसे तो कलेक्टेरियट में क्लर्क थे पर उनके द्वारा लिखी कविताएं उस समय देश के हर पत्रिकाओं में छपा करती थी जिन्हे देख कर मैं बहुत प्रभावित होता था। साहित्यिक संस्कार में अंदर बचपन से ही था मेरे दादा जी जो अपने शहर के कवि थे उन्होंने मुझे बचपन में कई कवितायेँ सुनाई प्रसिद्द लेखकों की कवितायेँ सुनाई जिससे मेरे अंदर एक आकर्षण पैदा हुआ। जिसके बाद मैं दिल्ली विश्वविद्यालय आया और वहां के प्रोफेसरों से सीखा और सोचा की मैं भी लेखक बनूँगा हांलाकि मैंने लिखना काफी देर से शुरू किया मैंने ३४-३५ वर्ष की उम्र में अपनी पहली किताब प्रकाशित की।
सर आपने साहित्य के एक बदलते स्वरुप को देखा है जहाँ आज के समय में सोशल मीडिया ,है सोशल साइट्स हैं,आप भी एक ऑनलाइन साहित्य वेबसाइट जनकपुलि.कॉम चलते हैं ,इसके साथ आज-कल ऑडियो प्लेटफॉर्म्स भी प्रचलन में हैं ,तो सर इस बदलाव को आप किस तोर पर देखते हैं ?
प्रभात रंजन :हिंदी के समक्ष यह एक बहुत बड़ा सवाल है मैं मानता हूँ आने वाले समय में जो बदलाव आएगा वो यह की केंद्रीय माध्यम के रूप में प्रिंट का जो वर्चस्व है वो ऐसा ही बना हुआ नहीं रहेगा ये वर्चस्व मुझे लगता है ख़त्म होगा प्रिंट की लोकप्रियता ,योग्यता और महत्त्व कम नहीं होगी पर हाँ वैसा बना भी नहीं रहेगा जैसा अभी है। मैं स्वयं ऑडियो बुक प्लेटफॉर्म्स पर सुनता हूँ जहाँ मुझे किसी प्लेटफार्म पर अच्छे वाचक मिलते हैं तो मैं पूरी पूरी किताब पढ़ जाता हूँ। साथ ही मैं मानता हूँ इसने हिंदी का विस्तार भी किया है।
आज युवा साहित्य या एक तोर पर नई हिंदी की बात की जाती है ,तो सर युवा साहित्य या इस न्यू हिंदी के भविष्य को आप कैसे देखते हैं ?
प्रभात रंजन :मैं मानता हूँ इस न्यू हिंदी ने अलग-अलग पृष्ट भूमियों के लेखकों को जोड़ने का कार्य किया है। इससे पहले मैं बात करूँ अपने समय की जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में बढ़ता था तब वहां हिंदी को कहीं न कहीं हीन भावना से देखा जाता था जो अब नहीं होता हिंदी की पहुँच आज के वक़्त में कहीं ज़यादा है। आज के वक़्त में जहाँ हवाईअड्डों पर हिंदी किताबे मिलती हैं पहले नहीं मिलती थी। तो हाँ इस न्यू हिंदी से बड़ा बदलाव आया है आज का युवा अपनी भाषा को बोलने में परहेज़ नहीं करता।बात करूँ साहित्य के इतिहास की तो साहित्य कोई सिनेमा नहीं है जिसका भविष्य २-३ वर्षों पर आधारित हो ,मैं मानता हूँ आज का युवा जैसा लिख रहा है अगर अबसे १० वर्ष बाद भी वैसा ही लखता है तो साहित्य का भविष्य वैसे ही उज्जवल है। पर हाँ मैं देखता हूँ आज के युवाओं में धैर्य का आभाव है वे रातों रात वो मुकाम हासिल कर लेना चाहते हैं जिसे वास्तव में हासिल करने में लोगो की उम्र गुजर जाती है।
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