
बचपन में मैं भाई-बहन की पुरानी किताबे पढ़ना पसंद नहीं करता था क्योंकि मुझे नई किताबो की खुशबु उतनी ही पसंद है जितनी उन किताबो के अंदर छपे शब्द।
- मनोज झा
कविशाला संवाद में राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भाषा और साहित्य के गंभीर मुद्दों पर चर्चा की।कार्यक्रम में भाषा विमर्श पर बात करते हुए राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की।
सर, हिन्दी के सरलीकरण और भविष्य को लेकर आपके क्या विचार हैं?
जवाब देते हुए मनोज झा ने खुद को दुभाषी बताया और साथ ही हिन्दी भाषा को प्रभुत्व की भाषा न मान कर उसको एक धारा के रूप में आगे बढ़ाने की बात की, और कहा कि सभी भाषाओं के बीच भाइयों की तरह प्रेम होना जरुरी है।
सर हिन्दी भाषा की तरक्की में सरकार की भूमिका के बारे में बताइये?
सवाल का जवाब देते हुए मनोज जी ने सीधे तौर पर कहा कि हिन्दी की उनत्ति में किसी सरकार का कोई योगदान नहीं है।आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा की भारत एक बड़ा देश है जहाँ हिन्दी को लेकर एकधर्मिता होना सही नहीं,लोगो के बीच हिन्दी एक प्रभुत्त की भाषा नहीं बल्कि एक आम बोलचाल की भाषा है और जो हिन्दी ने आज अपना मुकाम हासिल किया है उसका श्रेय अगर दिया जाए तो हिन्दी साहित्य को देना चाहिए जो लोगो तक कई माध्यमों से पहुंची है।उन्होंने कविओं और साहित्य के बारे में बात करते हुए कहा कि युवा कवि और लेखक सराहना के पात्र हैं और साथ ही कहा कि नक़ल को असल करने की नयी प्रवित्ति पर रोक लगाना जरूरी है जो आज कल सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचलन में हैं।
भाषा विमर्श के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी की उन्होंने हिंदुस्तान के साहित्य को एक अलग नज़रिये से देखा । वह कहते हैं कि यह साहित्य कोई सनसनीखेज़ साहित्य नहीं है बल्कि एक ऐसा साहित्य है जो गंभीर मसलो व गंभीर मुद्दों से उपजा है जिसने अपने जन्मकाल से अब तक एक उर्वर भूमि विकसित की है जिसकी खूबी होती है कि वो फसल को एक लम्बे असर तक देखना चाहती है।
हिन्दी देश की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है साथ ही और कई भाषाएं हैं ,व्यक्तिगत तोर पर अगर कोई व्यक्ति अपनी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना चाहे तो क्या कर सकता है?
इस पर उन्होंने कहा कि, विगत समय में विविध भाषाओं के बीच एक सौतेलापन आया है और यह तभी ख़त्म होगा जब उनके बीच भाईचारा स्थापित होगा।
कविशाला ने कई बार एक प्रश्न उठाया है कि देश में एक ऐसी शिक्षा नीति होनी चाहिए जिसमे हर पाठ्यक्रम में साहित्य जरूरी हो, इस पर आपकी क्या राय है?
इस पर बात करते हुए राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि वे इससे बिल्कुल सहमत हैं और साहित्य को सृजनात्मक्ता को बढ़ावा देने वाली एक मात्र पहुँच बताया और कहा किसी भी वयक्ति की सोच उसकी समझ उसकी अपनी भाषा में विकसित होती है ,साहित्य एक ज़रिया है अवसाद से बचाने का ,छात्र किसी भी क्षेत्र की शिक्षा ग्रहण कर रहा हो उसके लिए जरुरी है अपना एक घंटा साहित्य को देना जिससे उसके समझने की शक्ति विकसित होगी। साथ ही किताबों को पढ़ना बहुत जरुरी है।आगे बढ़ते हुए बताते हैं कि बचपन में वे भाई-बहन की पुरानी किताबे पढ़ना पसंद नहीं करते थे क्योंकि उन्हें नई किताबो की खुशबु उतनी ही पसंद है जितनी उन किताबो के अंदर छपे शब्द।
हिंदुस्तान का साहित्य कोई सनसनीखेज़ साहित्य नहीं हैं बल्कि एक ऐसा साहित्य है जो गंभीर मसलो गंभीर मुद्दों से उपजा है।
- मनोज झा
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