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पद्म भूषण गोपीचंद नारंग से फरीदून शहरयार की कविशाला पर खास बातचीत

Kavishala InterviewsKavishala Interviews August 26, 2021
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पद्म भूषण गोपीचंद नारंग से फरीदून शहरयार की कविशाला पर खास बातचीत


91 वर्षीय विश्व प्रख्यात उर्दू विद्वान तथा श्रेष्ठ आलोचक गोपीचंद नारंग, जिन्होंने अपने विविध उपन्यासों तथा लेखनी से विश्व भर में सम्मान अर्जित किया है। गोपीचंद नारंग का जन्म 11 फरवरी सन् 1931 को दुक्की शहर (जो बलूचिस्तान में स्थित है) में हुआ।

उन्होंने अपना शुरूआती जीवन बलुचिस्तान में व्यतीत किया, जहाँ वे पले-बढ़े और विभाजन के बाद दिल्ली आ गए, सन् 1954 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त किया तथा शिक्षा मंत्रालय से अध्येतावृति प्राप्त कर अपना डॉक्टरल शोधकार्य 1958 में सम्पूर्ण किया |

वे हमें बताते हैं कि जहाँ नए छात्र विभिन्न पाठक्रमों में दाखिला ले रहे थे, उर्दू अध्ययन में वे अकेले छात्र थे। सन् 1957-1958 में उन्होंने सेंट स्टीफेन्स कॉलेज में उर्दू साहित्य पढ़ाना शुरू किया, कुछ समय बाद वे दिल्ली के उर्दू विभाग मेंजुड़ेऔर सन् 1961 में रीडर हो गए ।उन्होंने विस्कॉनसिन यूनिवर्सिटी में सन्1963 में एक विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपना योगदान दिया।उन्होंने कई प्रमुख यूनिवर्सिटि में अध्यापन कार्य किया है तथा सन् 1974 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में एक प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में वर्षों तक कार्य किया, सन् 1986 से वे दुबारा दिल्ली विश्वविद्यालय में सन् 1995 तक कार्यरत रहे।

गोपी चंद नारंग ने न केवल उर्दू पुस्तकें परंतु उर्दू के संग-संग हिन्दी अंग्रेजी में 65 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, हालही में उनके द्वारा लिखी पुस्तक “द हिडन गार्डन” से उन्हें विदेशों में अधिक नाम तथा प्रसिद्धि प्राप्त हुई ।

उनके पिता जो स्वयं एक संस्कृत तथा फा़रसी के विद्वान थे, उन्होंने गोपीचंद को एक बौद्धिक और प्रभावशाली व्यक्ति रूप में पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।उनके द्वारा लिखी उनकी पहली कृति "कारखानवरी डायलेक्ट ऑफ़ दिल्ली उर्दू", जिसका प्रकाशन सन् 1961 में हुआ।

वे बताते हैं कि उन्हें शुरुआत से ही उर्दू भाषा का मिश्रण तथा उसकी विविधता की प्रती खासा दिलचस्पी रही है। गोपीचंद जी के इसी कार्य निष्टा तथा उर्दू के प्रति उनके दिल-जूनून के लिए उनके कारकिर्दगी में उन्हें कई विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सन् 1977 में पाकिस्तान से राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक और सन् 1995 में उनके द्वारा रचित एक समालोचना सांख्तियात और मशरीकी शेरियान के लिए उन्हें साहित्य पुरस्कार (उर्दू) तथा , सन् 2004 में भारत में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

इसके साथ -साथ उन्हे कई और दुर्लभ सम्मान भी प्रदान किया गया, जैसे दिल्ली और जामिया मिलिया इस्लामिया दोनो प्रमुख विश्वविद्यालयों द्वारा प्रोफेसर एमेरिट्स के रुप में सम्मानित किया गया।


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