
बंगाल साहित्य को एक नई ऊंचाई देने वाले साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय

साहित्य जगत में प्रतिष्ठित पुरस्कार 'सरस्वती सम्मान' से सम्मानित बंगाल भाषा के प्रख्यात साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय का जन्म अब बांगलादेश में पड़ने वाले फ़रीदपुर जिले में एक शिक्षक के घर हुआ था। वहीं से सुरेन्द्रनाथ कॉलेज ,दम-दम मोतीझील कॉलेज ,और सिटी कॉलेज अपनी पढाई करते हुए स्नातक की पढाई पूर्ण की। सुनील गंगोपाध्याय बंगाल के महान बुद्धिजीवियों में से एक थे जिन्होंने अपनी लेखनी से बंगाल साहित्य को एक नई ऊंचाई देने का कार्य किया। वे अक्सर नील लोहित ,निल उपाध्याय और सनातन पातक के नाम से लिखते थे। सुनील की कविताओं में 'नीरा' नामक एक पात्र रहीं जो बंगाली भाषी लोगो के बिच आज भी उतनी ही प्रसिद्ध है। वे युवा बंगाली कवियों को बढ़ावा देने का कार्य करते थे। जो ये बताता है कि वो केवल वर्तमान को ही नहीं बल्कि भविष्य को भी साथ ले कर चलते थे। सुनील गंगोपाध्याय हमेशा से धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे और अपनी कलम से उन्होंने कई बार इसका विद्रोह भी किया। १९६५ में अपने पहले उपन्यास आत्मप्रकाश से साहित्य जगत में कदम रखने वाले प्रख्यात साहित्यकार सुनील गंगोपाध्याय ने २०० से अधिक पुस्तके लिखी हैं जिनमे १९८५ में ब्रितानी शासन के भारत के इतिहास पर आधारित उनके उपन्यास 'शोई शोमोए' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था जिसका अब तक कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। इतना ही नहीं सुनील गंगोपाध्याय के उपन्यासों पर कई पुस्तके भी लिखी जा चुकी हैं।
साहित्यिक जीवन :
बात करें उनके साहित्य जीवन की तो ,सुनील गंगोपाध्याय १९५३ से प्रकाशित होना शुरू हुई कृतिका नामक लोकप्रिय सेमिनल पत्रिका के सम्पादक थे जिस पत्रिका ने आने वाली नई पीढ़ी के लिए एक मंच का कार्य किया। इसके बाद उन्होंने कोलकाता प्रकाशन घर आनंद बाज़ार समूह (ABP)के लिए लिखना शुरू किया। वहीं २००८ में उन्हें साहित्य अकादमी का अध्यक्ष चुना गया।
लेखनी शैली
बात करें उनके लेखनी शैली की तो वे सांप्रदायिक दंगो समाज में विकसित धार्मिक कट्टरता पर लिखते थे एक तोर पर एक आक्रमण शैली उनकी कृत्यों में नज़र आती थीं और इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी पहली ही कृति आत्मप्रकाश विवादों में घिर गई थी। वास्तव में सुनील गंगोपाध्याय बहुमुखी लेखक थे जिन्होंने कविताएं ,उपन्यास ,लघु कथाएं, निबंध की लिखे और बाल साहित्य में भी लेखन कार्य किया। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में पार्थो आलो और पुर्बो पश्चमी शामिल हैं। आपको बता दें उनके उपन्यास 'प्रतिद्वंद्वी' पर सुप्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे फिल्म भी बना चुके हैं। साहित्य में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चूका है।
सम्मान :
आनंद पुरस्कार
द हिन्दू पुरस्कार
सरस्वती सम्मान
बंकिम पुरस्कार
साहित्य सेतु पुरस्कार
साहित्य अकादमी पुरस्कार
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहते हुए ही सुनील गंगोपाध्याय का ७८ वर्ष की उम्र में २४ अक्टूबर को उनका निधन हो गया।
उत्पल बैनर्जी द्वारा अनुदित सुनील गंगोपाध्याय की रचना आपके सामने प्रस्तुत है :
हमारे बड़े विस्मयकारी दुःख हैं
हमारे जीवन में हैं कई कड़वी ख़ुशियाँ
माह में दो-एक बार है हमारी मौत
हम लोग थोड़ा-सा मरकर फिर जी उठते हैं
हम लोग अगोचर प्रेम के लिए कंगाल होकर
प्रत्यक्ष प्रेम को अस्वीकार कर देते हैं
हम सार्थकता के नाम पर एक व्यर्थता के पीछे-पीछे
ख़रीद लेते हैं दुःख भरे सुख,
हम लोग धरती को छोड़कर उठ जाते हैं दसवीं मंज़िल पर
फिर धरती के लिए हाहाकार करते हैं
हम लोग प्रतिवाद में दाँत पीसकर अगले ही क्षण
दिखाते हैं मुस्कराते चेहरों के मुखौटे
प्रताड़ित मनुष्यों के लिए हम लोग गहरी साँस छोड़कर
दिन-प्रतिदिन प्रताड़ितों की संख्या और बढ़ा लेते हैं
हम जागरण के भीतर सोते हैं और
जागे रहते हैं स्वप्न में
हम हारते-हारते बचे रहते हैं और जयी को धिक्कारते हैं
हर पल लगता है कि इस तरह नहीं, इस तरह नहीं
कुछ और, जीवित रहना किसी और तरह से
फिर भी इसी तरह असमाप्त नदी की भाँति
डोलते-डोलते आगे सरकता रहता है जीवन !
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