
यह एक अदृश्य आग की तरह थी जिसे हम महसूस कर सकते थे,
जो हमारे आपसी अंधकार को भेदने की कोशिश कर रही थी।
इसने मुझे चौंका दिया कि हम में से प्रत्येक दूसरे के लिए अंधेरा है।
तीन दिन या तीन साल जब तक हम अँधेरे में जलते हुए क्षण को पकड़ नहीं लेते,
तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता,
यह अच्छी तरह से जानते हुए कि यह टिकेगा नहीं और
इसके बुझ जाने के बाद हम अपने स्वयं के ठंडे एकांत में वापस आ जाएंगे।
— निर्मल वर्मा
निर्मल वर्मा जी हिन्दी साहित्य दौर के एक प्रमुख लेखक को हिन्दी साहित्य में नई कहानी के प्रथम अन्वेषक के रूप में देखा जाता है। और हिन्दी साहित्य के मशहूर विश्लेषक 'डॉक्टर नामवर सिंह ' ने निर्मल वर्मा जी की कहानी "परिंदे " को हिन्दी साहित्य की पहली नई कहानी मानते हैं।
निर्मल वर्मा जी ही वो पहले लेखक थे जिन्होंने कहानियों का केंद्र सामाजिक स्थितियों से मानसिक स्थितियों की ओर बदला। उनकी कहानियां अक्सर गहराई और संवेदनशीलता के लिए भी जानी जाती है।
निर्मल वर्मा जी का जन्म हुआ 3 अप्रैल 1929 को शिमला में हुआ और शायद यही वजह है कि उनकी कहानियों मे पहाड़ों के प्रति एक विशेष लगाव देखने को मिलता है। उनकी कहानियों में पहाड़ों का, चीर के पेड़ो का, बर्फ का, धुंध का, जिक्र अक्सर देखने को मिलता है।
उन्होने अपना ग्रेजुएशन दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से किया। और तभी उनकी कहानियों में दिल्ली का जिक्र इस तरह से आता है जैसे उन्होने उस शहर को भरपूर जिया हो। और यह हम सभी जानते है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी शहर को कॉलेज के ही दिनो मे भरपूर जीता है।
सन 1959 में यूरोप इंस्टीट्यूट ऑफ ओरियंटल स्टडीज में उन्हे कुछ उपन्यासों और कहानियों के हिन्दी में अनुवाद करने के लिए यूरोप में आमंत्रित किया गया और वह अगले दस सालों तक वही रहे। एक लेखक के तौर पर उनका सर्वश्रेष्ठ वक्त वही गुजरा। यूरोप में गुजारे इस लंबे वक्त का और इस संसर्ग का उनकी लेखन शैली पर प्रभाव देखने को मिलता हैं। और इसी कारणवश हिन्दी साहित्य में उन्हे एक बाहरी के तौर पर जाना जाता था - निर्मल वर्मा "द आउट साइडर ऑफ इंडिया इन लिट्रेचर "।
उनकी कहानियों में पीढ़ा, यातना, उदासी, अकेलापन, एकांत, त्रासदी, इंतजार, ये सभी शब्द बिखरे पड़े रहते हैं। उनके लिखने में एक लय है, उदासी भरी लय। जिन को पढ़ने से एक अलग किस्म की गहराई और सुकून का एहसास होता है। उनकी कहानियां पढ़ने से ऐसा लगता है, कि हम खुद से ही बात कर रहे हो। जैसे कि हम कही नीचे दब गए थे और शायद हम उस बात को भूल भी गए थे पर, उन्हे पढ़के लगता है कि हम खुद को ही हाथ पकड़ कर नीचे से ऊपर उठा रहे हो। उनकी कहानियों को पढ़ने से अपने मन में उतरने का और अंतर मन में टटोलने का मौका मिलता है। निर्मल वर्मा जी ने अकेलेपन, अलगाव और उदासी की भावना को कहानी का अहम हिस्सा बना दिया। उनके किरदार अक्सर उदासी और अकेलेपन में डूबे रहते है, इसीलिए उन्हें अकेलेपन का कवि भी बताया जाता है - निर्मल वर्मा "द पोएट ऑफ लॉनलीनेस "।
उनकी कहानियां पढ़कर हमे यह भी एहसास होता है कि, हर व्यक्ती किसी न किसी से दुखी हैं, हम सबके अपने - अपने दुख है और कोई भी दुख छोटा नहीं होता। इसीलिए हम सबको एक दुसरे के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।
निर्मल वर्मा जी के लेखन की एक ख़ास बात ये भी है कि, उनके किरदार कभी भी बनावटी नहीं लगते। उनमें एक गहराई होती हैं। वह अक्सर खयालों में डूबे रहते हैं, और खामो
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