
'महाभोज' लिखने वाली सुप्रसिद्ध लेखिका और कथाकार मन्नु भंडारी का निधन

“ओस-भीगी दूब पर घूमने से केवल नेत्रों की ज्योति ही नहीं बढ़ती, मन-मस्तिष्क में भी ऐसी तरावट आती है कि सारा दिन आदमी तनाव-मुक्त होकर काम कर सकता है। मन शांत, चित्त प्रफुल्लित!
- मन्नु भंडारी
'महाभोज' लिखने वाली सुप्रसिद्ध लेखिका और कथाकार मन्नु भंडारी ने आज ९० वर्ष की उम्र में आज १५ नवंबर को आखरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया। "मशहूर हिंदी फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ मन्नु भंडारी की रचना ‘यही सच है’ पर आधारित है इसके अलावा भी वह कई प्रसिद्ध रचनाओं की रचनाकार हैं। उन्हें अक्सर नई कहानी आंदोलन के अग्रदूतों में से एक के रूप में श्रेय दिया जाता है। उन्होंने महिलाओं की आज़ादी और सशक्तिकरण पर आधारित कई रचनाएं की जिससे उनकी पहचान पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका के तौर पर होती थी। वास्तव में मन्नू भंडारी ने ‘नई महिला’ की छवि को गढ़ने का कार्य किया। उनकी कहानियों में उनके महिला पात्रों को मजबूत, स्वतंत्र , पुरानी गठित रीतिओं को तोड़ने वाली के रूप में देखा जा सकता है। हांलाकि उन्होंने शिक्षित महिलाओं ज़्यादा प्रकाश नहीं डाला बल्कि उन्होंने यौन व्यवहार, भावनात्मक, मानसिक और आर्थिक शोषण जैसे पहलूओं पर विचार कर भारतीय समाज में महिलाओं को बहुत कमजोर स्थिति पर प्रकाश डाला और समाज के सामने ऐसे पहलुओं को उजागर करने का कार्य किया जिन पर सामान्यतः बात नहीं की जाती।
“आँखों की कोरों से दो बूँदें ढुलककर झुर्रियों में ही बिला गईं।”
-मन्नु भंडारी
उनका पहला उपन्यास, एक इंच मुस्कान, 1961 में प्रकाशित हुआ था जो उन्होंने अपने पति, लेखक और संपादक राजेंद्र यादव के साथ मिलकर लिखा था। वहीं उनका लिखा दूसरा उपन्यास ‘आपका बंटी’ भी बहुत लोकप्रिय रही जिसे हिंदी साहित्य में 'मील का पत्थर' माना जाता है। लेखन कार्य के साथ -साथ उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। भंडारी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज में लंबे समय तक पढ़ाने का काम किया। आज उनका यूँ चला जाना हिंदी साहित्य के लिए एक छती है। 'मैं हार गई', 'तीन निगाहों की एक तस्वीर', 'एक प्लेट सैलाब', 'यही सच है', 'आंखों देखा झूठ' और 'त्रिशंकु' जैसी महत्वपूर्ण कृतियों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।
व्यवहार में ऐसा संतुलन-संयम बड़ी साधना से ही आता है
-मन्नु भंडारी
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