इस्कॉन के जरिए लगभग 125 देशों के अनगिनत लोगों को श्रीकृष्ण की भक्ति से जोडने वाले स्वामी प्रभुपाद जी की आज 125वीं जयंती पर उनको नमन's image
Krishna JanmashtamiArticle10 min read

इस्कॉन के जरिए लगभग 125 देशों के अनगिनत लोगों को श्रीकृष्ण की भक्ति से जोडने वाले स्वामी प्रभुपाद जी की आज 125वीं जयंती पर उनको नमन

Kavishala DailyKavishala Daily August 18, 2022
Share0 Bookmarks 194020 Reads6 Likes

मैं अकेला हूँ, और मैं सब कुछ नहीं कर सकता, 

इसका मतलब यह नहीं है, कि मैं कुछ भी नहीं कर सकता।

क्योंकि मैं कुछ कर सकता हूँ, तो कुछ करूँगा, 

और कुछ कुछ कर कर के कुछ भी कर दूँगा।

- अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद


अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, जिनको हम सभी इस्कॉन मंदिर के संस्थापक के रूप में और सनातन धर्म के प्रमुख प्रचारक के रूप में जानते हैं| यह ऐसे महान सन्यासी थे की, जिन्होंने प्रेम, श्रद्धा और अपनी अथाह लगन से लोगो का मन परिवर्तित कर के विश्व में अपना एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।इन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को विश्व के कोने-कोने में उजागर किया।

इस्कॉन के जरिए लगभग 125 देशों के अनगिनत लोगों को श्रीकृष्ण की भक्ति से जोडने वाले स्वामी प्रभुपाद जी की आज 125वीं जयंती है।बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 1 सितंबर को श्रीला भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती के अवसर पर एक विशेष स्मारक सिक्का 125 रुपये का सिक्का जारी करेंगे और शाम 4:30 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सभा को संबोधित करेंगे।


चलिए जानते हैं स्वामी प्रभुपाद का प्रारंभिक जीवन :

1 सितम्बर 1896 ई वीं सदी में जन्माष्टमी के दूसरे दिन कलकत्ता के एक बंगाली परिवार में, सुवर्ण वैष्णव के यहां अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म हुआ था। इन्हें अभय चरण के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है निडर और जो भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की शरण लेता है। 

नंदोत्सव पर जन्म होने के कारण इन्हें नंदू लाल भी कहा जाता था। पिता का नाम ‘गौर मोहन डे’ था, जो एक कपड़ा व्यापारी थे, और माता का नाम ‘रजनी’ था, जो एक गृहिणी थी।उनके पिता ने उनका पालन पोषण एक कृष्ण भक्त के रूप में किया था। बचपन में बच्चों के साथ खेलने के वजाए, वो मंदिर जाना पसंद करते थे। 14 साल की उम्र में ही इनकी माता का देहांत हो गया था। 22 साल की उम्र में पिता द्वारा इनका विवाह 11 साल की राधा रानी देवी से करा दिया गया था ।विवाह के समय इनका फार्मेसी का व्यवसाय था। सन 1922 में इनकी मुलाकात एक प्रसिद्घ दार्शनिक भक्ति सिद्धांत सरस्वती से हुई, जो 64 गौडीय मठ (वैदिक विद्यालय) के संस्थापक थे। 

बता दें उन्होंने भारत की आजादी के लिए असहयोग आन्दोलन में भी गांधीजी के साथ भी दिया था। 


कैसे जुड़े कृष्ण भक्ति से

उनके गुरु स्वामी जी भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती ने प्रभुपाद के अंदर धर्म के प्रति स्नेह और लगन की पहचान की, जिन्होंने प्रभुपाद स्वामी जी को अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया, और कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। क्योंकि अन्य देशों का ज्ञान तो हमारे देश मे आ रहा है, लेकिन हमारे देश का ज्ञान कही और नही जा पा रहा है। 

उसके पश्चात इन्होंने अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए पश्चिमी जगत में ज्ञान पहुँचाने का काम किया, एवं गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए, उन्होंने 59 वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे।

आज पूरे विश्व के लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने है, और हिन्दू धर्म के भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है उसका असली श्रेय स्वामी प्रभुपाद जी को ही जाता है। इन्होंने ही कृष्ण भक्ति को पूरे विश्व मे अनेक भाषाओं में रूपांतरित करके विश्व मे फैला दिया ।

इन्होंने आजीवन

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts