
" गाजवणारी, लावणी नृत्यांगना,
सांवला चेहरा, सुंदर गला,
महाराष्ट्र की प्रसिद्ध कलाकार तमाशा,
' तमाशा सम्राज्ञी ' मिली पदवी,
विठाबाई मांग नारायणगांवकर नाम हैं उसका । "
जुलाई 1935 से 15 जनवरी 2002 तक की एक जीवनी, जो थी महाराष्ट्र की प्रसिद्ध तमाशा परंपरा की एक बहादुर और बहुमुखी व्यक्तित्व वाली तमाशा की महारानी विठाबाई। बचपन से ही पिता के संग-संग गांव-गांव घूमकर नृत्य, संवाद शैली, गायन की शिक्षा लेने लगी। पहली मंडली ' भाऊ-बापू ' के शो में विठाबाई अपनी कला का प्रर्दशन करने लगी । फिर मामा की कला मंडली के साथ मिलकर तमाशा प्रस्तुती का अनुभव व संस्कृति का ज्ञान मिला। पढ़ाई लिखाई का ज्ञान न होने पर भी नाटय शास्त्र, अभिनय को व्यक्त करना शुरू कर दिया।
उनके जीवन की वो 'घटना' जिसकी वजह से उनकी पहचान बनी :-
अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभाते हुए उसके मामा ने उसकी शादी करदी। परन्तु, शादी के बाद उनका पति उन्हे पीकर मारा करता था। तमाशा प्रोग्राम बुक कर, पैसे कमाकर लाने को कहता था। यहां तक कि जब वह गर्भवती थी तो भी नाचने पे मजबूर किया करता था।
ऐसे ही चलते हुए, एक बार जब वह नौ महीने की गर्भवती थी उन्हे स्टेज शो करने पे मजबूर किया। उस प्रोग्राम के दौरान लावणी करते हुए उन्हे अचानक बहुत तेज़ दर्द उठा। तब अपनी बेटियों को शो जारी रखने का कहकर वह ग्रीनरूम में चली गई। वहा बिना किसी डॉक्टर या दाई के, अकेले ही उन्होंने अपने लड़के को जन्म दिया। अपनी साड़ी का कुछ कपड़ा फाड़ कर बच्चे को लपेटा और गर्भनाल को पास पड़े पत्थर से काटा। और फिर से दुबारा साड़ी लपेट क
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments