મારા સાચા સ્વભાવને ક્યારેય જાણ્યા વિના, મને અનંત દુ:ખ પ્રાપ્ત થયું, પ્રબુદ્ધ ગુરુઓએ મને તે અનાવરણ કર્યું, તે માટે હું તેમના કમળના ચરણોમાં નમન કરું છું
-શ્રીમદ રાજચંદ્ર
महात्मा गांधी आज विश्व भर में असंख्यक लोगो के लिए एक प्रेरणाश्रोत एवं मार्गदर्शक हैं जिन्होंने अहिंसा का व्रत धारण करते हुए आंदोलनों और एकजुटता से देश को स्वतंत्र कराया पर क्या आप जानते हैं महात्मा गांधी के प्रेरणाश्रोत और प्रारंभिक उपदेशक कौन थें ? आज के हमारे इस लेख में हम बात करने जा रहे हैं श्रीमद राजचंद्र की जिन्हे कई लोग जैनों का 25वाँ तीर्थंकर कहते थे ,वे एक जैन कवि, दार्शनिक और विद्वान थे। महात्मा गांधी अध्यात्म से जुड़े व्यक्ति थे वे श्रीमद राजचंद्र से अध्यात्मिक विषयों पर लगातार विचार-विमर्श और पत्राचार किया करते थे। श्रीमद राजचंद्र का महात्मा गांधी के जीवन पर गहरा प्रभाव था वहीं उन्हें 'महात्मा नो महात्मा' कहा जाता था, यानी गांधी के महात्मा। गांधी स्नेह से उन्हें रायचंद भाई कहते थे। गांधी और राजचंद्र की प्रथम भेंट मुंबई में हुई थी, जब वे १८९१ में एक बैरिस्टर के रूप में इंग्लैंड से लौटे। शास्त्रों के उनके ज्ञान और नैतिक ईमानदारी ने युवा मोहनदास करमचंद गांधी पर गहरी छाप छोड़ी दी थी। दो वर्ष में दोनों के बिच रिश्ता और मजबूत हो गए। गांधी के दक्षिण अफ्रीका चले जाने के बाद, दोनों पत्रों के माध्यम से एक दूसरे के साथ संपर्क में रहे। राजचंद्र का सत्य, अहिंसा और धर्म के सिद्धांतों का पालन बाद में गांधीवाद का मूल सिद्धांत बन गया। अपने अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी ने सभी अंग्रेजी जानने वालों को टॉल्सटॉय की किताबें और गुजराती भाइयों को रायचंद भाई की 'आत्म सिद्धि' पढ़ने की सलाह देते थे।गांधी जब अध्यात्मिक और वैचारिक उथल-पुथल से गुज़र रहे थे तब श्रीमद राजचंद्र के शब्दों से उन्हें शांति मिली। महात्मा गांधी उनके सन्दर्भ में कहते थे क "मैं उन्हें अपने समय का सर्वश्रेष्ठ भारतीय मानता हूँ।"
श्रीमद राजचन्द्र का जन्म नवंबर १८६७ में मोरबी के पास एक गांव वावनिया में। महज सात साल की उम्र में उन्होंने अपने पिछले जन्मों को याद करने का दावा क
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