छायावादी युग के विद्रोही कवि - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला''s image
Article7 min read

छायावादी युग के विद्रोही कवि - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

Kavishala DailyKavishala Daily October 15, 2021
Share1 Bookmarks 185947 Reads2 Likes

दुख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूँ आज जो नहीं कही

- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"


हिंदी कविता में छायावादी युग के चार स्तम्भों में से एक माने जाने वाले कवी,उपन्यासकार एवं निबंधकार सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' अपने नाम के ही अनुरूप हर क्षेत्र में निराले थे। अपनी कविताओं से ख्याति प्राप्त करने वाले सूर्यकांत त्रिपाठी ने मुक्त छंद का आविष्कार किया था वहीं उनकी कविताओं में विषय की विविधता और नविन प्रयोगों की बहुलता थी। 


आपको बता दें उनकी पहली कविता ‘जूही की कली’ (1916) तत्कालीन प्रमुख साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशन योग्य न मानकर संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लौटा दी थी और आज उस कविता की गिनती छायावाद की श्रेष्ठतम कविताओं में होती है। 1923 में निराला ने ‘मतवाला’ नामक पत्रिका का संपादन आरंभ किया, जो हिंदी का पहला व्यंग्यात्मक पत्र था।


कविताओं के माध्यम से ही करते थे विद्रोह प्रदर्शित :

अपनी कविताओं के माध्यम से दिन-बंधुओं की स्थिति को समाज के समक्ष लाने का प्रयास करते थे। अपनी कविताओं के माध्यम से ही वे अपना विद्रोह प्रदर्शित करते थे। उनकी लेखनी से उनके गहरे विचारों का मूल्यांकन किया जा सकता है। 

वे दहेज़ प्रथा का विरोध करते थे। उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह बिना दहेज़ या किसी आडम्बर हुए दिखावे के सम्पूर्ण किया ,परन्तु दुर्भाग्य की बात है आज भी समाज में दहेज़ प्रथा विद्यमान है। उनकी रचनाएं आज के परिवेश में पूरी तरह सामजिक सरोकार से जुड़ी हुई हैंहिंदी साहित्य में वसंत को समर्पित सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक, इस कालजयी कविता के रचनाकार ‘निराला’ का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन ही1896 में बंगाल के मेदनीपुर जिले में हुआ था। वसंत को समर्पित यह कविता गीतिका नामक काव्य संग्रह में संकलित है।


प्रारंभिक शिक्षा:

उनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल हाई स्कूल से हुई थी परंतु उन्हें वह पद्धति में रुचि नहीं लगी। फिर इनकी शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था।जिसके बाद वह लखनऊ और फिर उसके बाद गढकोला उन्नाव आ गए थे। शुरुआत के समय से ही उन्हें रामचरितमानस बहुत अच्छा लगता था।


निराला जी बहुभाषी थे जिन्हे कई भाषाओं का निपुण ज्ञान था: हिंदी ,बांग्ला ,अंग्रेजी, संस्कृत। श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर से वह अधिक रूप से प्रभावित थे। 

उनकी सबसे पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र 1920 जून में प्रकाशित हुई। वहीं इनकी सबसे पहली कविता संग्रह अनामिका 1923 में प्रकाशित हुई थी।


महादेवी वर्मा को मानते थे बहन :

निराला जी का छायावाद के चार स्तम्भों में प्रमुख स्थान था। निराला जी की रचनाओं में राम की शक्ति पूजा सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाओं में से है। प्रसिद्ध कवियित्री महादेवी वर्मा को सूर्यकांत त्रिपाठी अपनी बहन मानते थे। कवी सुरेश फक्कड़ एक घटना का ज़िक्र करते हैं जब एक महादेवी वर्मा प्रयाग प्रवास के दौरान राखी बांधने पहुंची उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से आवाज आयी दो रूपए दो। इस पर महादेवी वर्मा ने पूछा को,जवाब में निराला जी ने कहा एक रूपए उस रिक्शा के जिस पर तुम बैठ कर आई हो हुए एक रूपए राखी बांधने के बदले देना है। उनके जीवन में कई संघर्ष आए परन्तु उन्होंने कभी अपने सिद्धांत के साथ समझौता नहीं किया समस्याओं का सामना किया।

आज ही के दिन १५ अक्टूबर १९६१ को दारागंज मुहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में उन्होंने आखरी सांस ली और साथ ही साहित्य जगत में एक युग का अंत हो गया। 


आज उनकी पुन्यतिथि पर कविशाला उन्हें नमन करता है।


उनकी कुछ रचनाओं की प्रस्तुति आपके समक्ष प्रस्तुत है :


वह तोड़ती पत्थर


देखा मैंने उसे

इलाहाबाद के पथ पर

वह तोड़ती पत्थर


कोई न छायादार

पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार

श्याम तन, भर बंधा यौवन

नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन

गुरु हथौड़ा हाथ

करती बार-बार प्रहार

सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार


चढ़ रही थी धूप

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts