पूरा मोहल्ला शामिल होता था धर्मवीर भारती जी की होली में's image
HoliArticle7 min read

पूरा मोहल्ला शामिल होता था धर्मवीर भारती जी की होली में

Kavishala DailyKavishala Daily March 18, 2022
Share0 Bookmarks 54888 Reads5 Likes

प्रेम की बात हो तो कैसे एक और प्रेमी युगल की बात याद न आए, जो काल और समय की सीमाएं तोड़ चुका है। 83 वर्षीय पुष्पा भारती जी आज भी साहित्य सहवास में शाकुंतलम के अपने घर में उसी तरह रहती हैं जैसे 68-69 से रहती आई हैं धर्मवीर भारती जी के साथ। भारती जी ने देह भले ही त्याग दी, पर उन्होंने ना पुष्पा जी को छोड़ा है ना पुष्पा जी ने उन्हें। इसलिए आज भी भरपूर सुहाग का मान उनके सौम्य, गौर, सुंदर मुख पर झलकता है। उनकी हर बात में, हर सांस में परिलक्षित होता है। चाहे दरवाजे के बाहर लगी धर्मवीर भारती, पुष्पा भारती की नेम प्लेट्स हों, चाहे पूरे घर में खासकर अध्ययन कक्ष में जगह-जगह लगी उनकी तस्वीरों, फाइलों और यादों का अहसास- उस घर में भारती जी आपको घूमते, ठहाके लगाते, त्रिभंगी छवि में खड़े मुस्कुराते, किस्से-कहानियां सुनाते नजर आयेंगे। ‘प्रेम गली अति सांकरी, या में दुइ न समाएं’ को चरितार्थ करते हुए वे पुष्पा जी में समा गये हैं। उन्हीं की सांसों में स्पंदित होते हैं, उन्हीं के होठों से बोलते हैं।

होली के बारे में पुष्पा जी ने बहुत मजेदार बातें बताईं। वे पांच भाई और तीन बहन हैं, जिनमें पुष्पा जी और उनसे छोटा भाई सबसे शैतान और सक्रिय थे। होली से पहले दोनों भाई-बहन लखनऊ के घर की गली में बाल्टी ले कर निकल पड़ते थे गाय का गोबर बटोरने। बाल्टी भर जाती तो उसे अपने बहुत ऊंचे मकान की छत पर पलट देते। फिर उसे खूब चिकना करके बनती पांच भाइयों के नाम की पांच ढाल और पांच तलवारें और बीच में छेद वाले बड़े जैसी गोलाकार आकृतियां। इन्हें तेज धूप में सूखने दिया जाता। फिर सुतली में पिरो कर क्रम से छोटी होती हुई बहुत सी मालाएं बनतीं और होली की रात मुहल्ले की उस सबसे ऊंची छत पर उनका होलिका दहन होता। पांचों भाई उस आग में गन्ने भूनते और तीनों बहनें हरे चने के गुच्छे। आस-पड़ोस के लोग भी उस होलिका का मजा लेने आ जुटते। फिर खानपान, पकवान की बहार तो लाजिमी थी ही।

इतनी मजेदार होलियां बनाने के बाद जब उनका भारती जी से विवाह हुआ तो होली का स्वरूप बहुत भिन्न हो गया। भारती जी की मां खांटी आर्य समाजी थीं। वे बेहद सादगी से त्योहार मनाने में विश्वास करती थीं। वैसे भी पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के रीति-रिवाजों में काफी अंतर है। यही चलता रहता शायद, पर जब भारती जी पुष्पा जी को ले कर मुंबई के साहित्य सहवास के अपने घर में रहने आये तो उन्हें लगा कि पुष्पा जी को शौक है तो हम खुल कर होली मनायेंगे और उन्होंने घर में ही होली नहीं मनायी, आस-पास रहने वाले साहित्यकार-पत्रकार मित्रों को भी रंग में भिगोना शुरू कर दिया। पुष्पा जी बताती हैं कि भारती जी ने कहा चलो बाजार चल कर बड़ा सा हंडा ले आते हैं। अभी उसमें रंग घोलना,बाद में पानी भर कर रखने के काम आयेगा। साहित्य सहवास पर शशि भूषण बाजपेयी, उनकी बच्चियां रेखा, सुलेखा और उनक

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts