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उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार शायर जॉन एलिया

Kavishala DailyKavishala Daily November 8, 2021
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तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे

मेरी तनहाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं

मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें

मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।

-जॉन एलिया


उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार शायर जॉन एलिया अब तक के शायरों में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले शायरों में विद्यमान हैं। अपनी कलमकारी से न केवल पाकिस्तान परन्तु भारत के साथ दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है। हांलाकि ये आश्चर्य कर देने वाली बात है कि उनकी पहली रचना कविता संग्रह "हो सकता है" तब प्रकाशित हुआ था जब वह 60 वर्ष के थे।वहीं उनकी कविता का दूसरा खंड, अर्थात् उनकी मृत्यु के बाद (2003) में प्रकाशित हुआ, और तीसरा खंड "गुमान" (2004) नाम से प्रकाशित हुआ। ऐसा इसलिए क्यूंकि उन्हें अपना लिखा प्रकाशित करना पसंद नहीं था। जॉन साहेब का जन्म यूपी के 14 दिसंबर 1931 को अमरोहा में हुआ था। उनके पिता अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे। पांच भाइयों में सबसे छोटे जौन एलिया ने महज़ 8 साल की उम्र में पहले शेर की रचना की। जॉन एलिया अपने विचारों के कारण के विभाजन के सख्त खिलाफ थे उन्हें देश से मोहब्बत थी पर फिर भी विभाजन की चपेट में आये और करांची जा बसे। एक साहित्यिक पत्रिका, इंशा के संपादक बने, जहाँ उनकी मुलाकात एक और विपुल उर्दू लेखक ज़ाहिद हिना से हुई, दोनों के बिच नज़दीकियां बढ़ी और दोनों ने शादी की। पर यह शादी ज़्यादा वक़्त तक नहीं चली और 1984 में तलाक हो गया। खफा मिजाज के जौन गम में डूब गए और शायरी से दर्द को बयां करने लगे। जौन को जानने वाले कहते हैं कि वो बचपन से ही नरगिसी ख़्याल और रुमानियत पसंद थे। जौन एलिया को पसंद करने वाले लोग, जौन के चाहने वाले लोग उनकी शायरी से जितना लगाव रखते हैं उससे कहीं ज़्यादा उनके अंदाज़ पर कायल हैं। जिंदगी की छोटी-छोटी सच्चाईयों से लेकर तजर्बे की गहराईयां तक उनकी शायरी सब कुछ बयान करती है। ज़िंदगी में शायद जौन को उतनी शोहरत नहीं मिली जितनी मौत के बाद। जॉन एलिया को उर्दू के साथ-साथ अरबी, अंग्रेजी, फ़ारसी, संस्कृत और हिब्रू भाषा का अच्छा ज्ञान था। जॉन एलिया की ‘शायद’ (1991), ‘यानी’ (2003), ‘गुमान’ (2006) और ‘गोया’ (2008) शायरी और कविता की प्रमुख कृतियां हैं. अकेलेपन और शराब के आदि हो चुके जॉन एलिया का 8 नवंबर, 2002 में इंतकाल हो गया था। उनकी शायरियां उनके अकेलेपन और खालीपन की गवाही देती है


जो गुज़ारी न जा सकी हम से

हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है

-जॉन एलिया


कौन इस घर की देख-भाल करे

रोज़ इक चीज़ टूट जाती है

-जॉन एलिया


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