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मुंशी प्रेमचंद एक महान छवि हिन्दी भाषाओं मे ...

Kavishala DailyKavishala Daily January 24, 2023
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हिन्दी, बहुत खुबसूरत भाषाओं मे से एक है . हिन्दी एक ऐसा विषय है जो, हर किसी को अपना लेती है अर्थात्, सरल के लिये बहुत सरल और, कठिन के लिये बहुत कठिन बन जाती है. हिन्दी को हर दिन ,एक नया रूप, एक नई पहचान देने वाले थे, उसके साहित्यकार उसके लेखक थे. उन्ही मे से, एक महान छवि थी मुंशी प्रेमचंद की , वे एक ऐसी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे, जिसने हिन्दी विषय की काया पलट दी. वे एक ऐसे लेखक थे जो, समय के साथ बदलते गये और , हिन्दी साहित्य को आधुनिक रूप प्रदान किया. मुंशी प्रेमचंद ने सरल सहज हिन्दी को, ऐसा साहित्य प्रदान किया जिसे लोग, कभी नही भूल सकते. बड़ी कठिन परिस्थियों का सामना करते हुए हिन्दी जैसे, खुबसूरत विषय मे, अपनी अमिट छाप छोड़ी. मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के लेखक ही नही बल्कि, एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार जैसी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे . अगर बात की जाए मुंशी प्रेम चंद के जीवन की तो 31 जुलाई 1880 को , बनारस के एक छोटे से गाँव लमही में प्रेमचंद जी का जन्म हुआ था. प्रेमचंद जी एक छोटे और सामान्य परिवार से थे. उनके दादाजी गुर सहाय राय जोकि, पटवारी थे और पिता अजायब राय जोकि, पोस्ट मास्टर थे. बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही, संघर्षो से गुजरा था. जब प्रेमचंद जी महज आठ वर्ष की उम्र मे थे तब, एक गंभीर बीमारी मे, उनकी माता जी का देहांत हो गया. बहुत कम उम्र मे, माताजी के देहांत हो जाने से, प्रेमचंद जी को, बचपन से ही माता–पिता का प्यार नही मिल पाया. सरकारी नौकरी के चलते, पिताजी का तबादला गौरखपुर हुआ और, कुछ समय बाद पिताजी ने दूसरा विवाह कर लिया. सौतेली माता ने कभी प्रेमचंद जी को, पूर्ण रूप से नही अपनाया. उनका बचपन से ही हिन्दी की तरफ, एक अलग ही लगाव था . जिसके लिये उन्होंने स्वयं प्रयास करना प्रारंभ किया, और छोटे-छोटे उपन्यास से इसकी शुरूवात की. अपनी रूचि के अनुसार, छोटे-छोटे उपन्यास पढ़ा करते थे . पढ़ने की इसी रूचि के साथ उन्होंने, एक पुस्तकों के थोक व्यापारी के यहाँ पर, नौकरी करना प्रारंभ कर दिया. जिससे वह अपना पूरा दिन, पुस्तक पढ़ने के अपने इस शौक को भी पूरा करते रहे. प्रेमचंद जी बहुत ही सरल और सहज स्वभाव के, दयालु प्रवत्ति के थे. कभी किसी से बिना बात बहस नही करते थे, दुसरो की मदद के लिये सदा तत्पर रहते थे . ईश्वर के प्रति अपार श्रध्दा रखते थे. घर की तंगी को दूर करने के लिये, सबसे प्रारंभ मे एक वकील के यहा, पांच रूपये

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