जाने क्यों कोई मुझसे कहता
मन में कुछ ऐसा भी रहता
जिसको छू लेने वाली हर पीड़ा
जीवन में फिर जाती व्यर्थ नहीं
अर्पित है पूजा के फूलों-सा जिसका मन
अनजाने दुख कर जाता उसका परिमार्जन
अपने से बाहर की व्यापक सच्चाई को
नत-मस्तक होकर वह कर लेता सहज ग्रहण
वे सब बन जाते पूजा गीतों की कड़ियां
यह पीड़ा, यह कुण्ठा, ये शामें, ये घड़ियां
इनमें से क्या है
जिनका कोई अर्थ नहीं
कुछ भी तो व्यर्थ नहीं!
-धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती हिन्दी साहित्य के एक प्रख्यात लेखक हैं ,उन्होंने कई उपन्यास, कविता, कहानियां, एकांकी, काव्य-नाटिका, शोध-साहित्य, अनुवाद साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया।धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद के अतरसुइयां मुहल्ले में हुआ था । उनके पिता का नाम श्री चिरंजीवलाल वर्मा और माता का नाम श्रीमती चन्दा देवी था । उनका खानदान दबंग जमींदारों में से एक था । बता दें डॉक्टर भारती सामाजिक विचारक थे , वे प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संदापक भी थे। वे किसी गुट, दल या वाद से प्रेरित न होकर अपनी खुद की सोच और दृष्टि को अधिक महत्त्व देते थे।
उन्होंने कई रचनाएं की हैं जिनमे से उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सबसे प्रसिद्ध मानी जाती है। इसके अलावा उनका लिखित उपन्यास सूरज का सातवां घोरा काफी चर्चित है बता दे इस उपन्यास पर श्याम बेनेगल ने भी बनाई थी।
बात करे उनके बचपन की तो उनका बचपन बेहद गरीबी में बिता था , यहाँ तक की उनकी स्कूल फीस भी किसी तरह से जमा हो पाती थी। ऐसे में किताबों को खरीदना तो बहुत दूर की बात थी हांलाकि सभी चीज़ो के बाद भी पढ़ाई की लगन उनमे कूट-कूट कर भरी थी,उनकी ऐसी लगन को देखते हुए एक रोज इलाहबाद के एक लाइबेरियन ने उन्हें बुलाया और अपने नाम पर पांच दिन के लिए किताबे देना शुरू कर दिया और यहीं से उनका हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि बनने का सफर शुरू हो गया। सब पहले उन्होंने अंग्रेजी के नामी लेखकों के अनुवादों को पढ़ना शुरू किया और उनके मूल कृतियों को भी पढ़ा और हिंदी तथा अंग्रेजी भाषाओँ में कमान बैठाया।अपने छात्र जीवन में ही उन्होंने कई लेखकों को पढ़ना शुरू कर दिया था परिवार के संस्कारों ने उनके मन में देशभक्ति का भाव भरा था । मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था व ईमानदारी उन्हें पिता से मिली थी ।बता दें उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी॰ए॰ तथा हिन्दी में एम॰ए॰ की उपाधि हासिल की । डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में उन्होंने अपनी पी॰एच॰डी॰ पूरी की ।
इसके बाद वे इलाहाबाद के विश्वविद्यालय में 1959 तक एक लेक्चरर के रूप में कायर्रत रहे और 1960 में वे बम्बई आ गये जहाँ उन्होंने वर्ष 1960 में ही पुष्पा से विवाह किया, जिसकी लेखकीय प्रेरणा उन्हें मिलती रही ।
आईये नज़र डालते हैं उनके प्रमुख कृतियों :
कहानी संग्रह : मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, बंद गली का आखिरी मकान, साँस की कलम से, समस्त कहानियाँ एक साथ
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