
गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।
विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।
— गोवर्धन पूजा मंत्र
दिवाली से अगले दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जा रहा है। इंद्र देव के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। तभी से इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है।
गोवर्धन पर्वत की कहानी बेहद ही रोचक है। माना जाता है कि 5000 साल पहले यह पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई बहुत कम हो गई है। कहा जाता है कि पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत कम होता जा रहा है।
गोवर्धन पर्वत के श्राप की कथा :-
एक धार्मिक कथा के मुताबिक, एक बार ऋषि पुलस्त्य गिरिराज पर्वत के नजदीक से होकर गुजर रहे थे। इस पर्वत की खूबसूरती उन्हें काफी रास आई। ऋषि पुलस्त्य ने द्रोणांचल से आग्रह किया कि मैं काशी रहता हूं और आप अपना पुत्र गोवर्धन मुझे दे दीजिए, मैं इसे काशी में स्थापित करना चाहता हूं।
द्रोणांचल ये बात सुनकर बहुत दुखी हो गए। गोवर्धन ने ऋषि से कहा कि, मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं। लेकिन आपको मुझे एक वचन देना होगा। आप मुझे जहां रखेंगे, मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। पुलस्त्य ने वचन दे दिया। फिर गोवर्धन ने कहा कि, मैं दो योजन ऊंचा हूं और पांच योजन चौड़ा हूं, आप मुझे काशी कैसे लेकर जाएंगे। पुलस्त्य ने जवाब दिया कि मैं तपोबल के जरिए तुम्हें हथेली पर लेकर जाउंगा।
रास्ते में जब बृजधाम आया, तो गोवर्धन को याद आया कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकाल में यहां पर लीलाएं कर रहे हैं। गोवर्धन पर्वत ने पुलस्त्य ऋषि के हाथ पर धीरे-धीरे अपना भार बढ़ाना शुरु कर दिया, जिससे ऋषि तपस्या भंग होने लगी। और ज़्यादा वज़न हो जाने के कारण ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन पर्वत को वहीं रख दिया जिस से उनका वचन टूट गया।
थोडी देर बाद ऋषि पुलस्त्य ने पर्वत को उठाने की कई बार कोशिश की, लेकिन वो उसे हिला भी न सके। तब ऋषि पुलस्त्य ने आक्रोष में आकर गोवर्धन को श्राप दे दिया कि - तुमने छल
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