
मेरी पद्धति नास्तिकता है। मुझे लगता है कि नास्तिक दृष्टिकोण महानगरीय प्रथाओं के लिए एक अनुकूल पृष्ठभूमि प्रदान करता है। नास्तिकता की स्वीकृति मनुष्य और मनुष्य के बीच जाति और धार्मिक बाधाओं को तुरंत दूर कर देती है। अब कोई हिंदू, मुसलमान या ईसाई नहीं रहा। सब इंसान हैं। इसके अलावा, नास्तिक दृष्टिकोण मनुष्य को अपने पैरों पर खड़ा कर देता है। उसके कार्यों को नियंत्रित करने के लिए न तो दैवीय इच्छा है और न ही भाग्य।
-गोपाराजू रामचंद्र राव
भारत देश एक धर्म निष्पक्ष देश है जहाँ हर धर्म के लोग सम्मान से रहते हैं। कई महान संत-साधुओं की जन्म भूमि रहे इस देश में केवल धार्मिकआस्था वाले ही बल्कि कई ऐसे आंदोलनकारी भी हुए जिन्होंने नास्तिक विचारधारा का समर्थन किया। आज के इस लेख में हम बात करने जा रहे हैं नास्तिक केंद्र की स्थापना करने वाले गांधीवादी विचारधाराक गोपाराजू रामचंद्र राव की। दिलचस्प बात यह है कि एक नास्तिक होने के बावजूद वह महात्मा गांधी जो धार्मिक मान्यताओं पर विशवास किया करते थे उन्होंने गोरा को सेवाग्राम स्थित अपने आश्रम में आने का न्योता दिया था। गोरा के नाम से प्रसिद्ध गोपाराजू रामचंद्र के साथ गांधी अपने आश्रम सेवाग्राम में लंबी चर्चा किया करते थे और लगभग २ वर्ष तक आश्रम में रहे जो दर्शाता है कि गांधी और गोरा के बिच कितना गहरा सम्बन्ध था।
एक बार जब गांधी ने उनसे नास्तिकता और ईश्वरविहीनता के बीच अंतर करने पूछा तो गोरा ने इसका उत्तर देते हुए कहा :
ईश्वरविहीनता नकारात्मक है। यह केवल ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है। नास्तिकता सकारात्मक है। यह उस स्थिति पर जोर देता है जो भगवान के इनकार के परिणामस्वरूप होती है। जीवन के अभ्यास में नास्तिकता का सकारात्मक महत्व है।
गांधी ने गोरा के अस्पृश्यता विरोधी सुधार आंदोलन का समर्थन किया। एक और धार्मिक विश्वास रखने वाले महात्मा गांधी वहीं दूसरी और नास्तिक विचारधारा रखने वाले गोरा लेकिन दोनों के बिच स्थापित सम्बन्ध की झलक आज भी विजयवाड़ा स्थित नास्तिक केंद्र में लगी प्रदर्शनी 'बापू दर्शन' से मिलती है।
गोरा का जन्म 15 नवंबर, 1902 को ओडिशा के गंजाम ज़िले के छत्रपुरी में हुआ था। एक भारतीय समाज सुधारक, नास्तिक कार्यकर्ता और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदार थे। उन्होंने नास्
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