
दुनिया की हर फिज़ा में उजाला रसूल का;
यह सारी कायनात है सदक़ा रसूल का;
खुश्बू-ए-गुलाब है पसीना रसूल का;
आप को हो मुबारक महीना रसूल का।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक हो!
-अज्ञात
इस्लाम को मानने वाले हर व्यक्ति के लिए खास महत्व रखता है यह त्योहार जिसे ईद-ए-मिलाद (Eid-e-Milad) या मालविद (Mawlid) के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस माह की 12 तारीख को 571ई. में पैंगबर साहब का जन्म हुआ था जिनकी याद में जुलूस निकाले जाते हैं और जगह-जगह बड़े आयोजन भी किए जाते हैं। पैगंबर मोहम्मद साहब का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहुअ अलैही वसल्लम था माना जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद ही थे जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले कुरान अता की थी जिसके बाद पैगंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया था। कविशाला की और से आप सभी को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक हो।
तो चलिए अब पढ़ते हैं ईद पर आधारित कुछ खूबसूरत कविताओं और शायरिओं को :
गले लगाएँ करें प्यार तुम को ईद के दिन
इधर तो आओ मिरे गुल-एज़ार ईद के दिन
ग़ज़ब का हुस्न है आराइशें क़यामत की
अयाँ है क़ुदरत-ए-परवरदिगार ईद के दिन
सँभल सकी न तबीअ'त किसी तरह मेरी
रहा न दिल पे मुझे इख़्तियार ईद के दिन
वो साल भर से कुदूरत भरी जो थी दिल में
वो दूर हो गई बस एक बार ईद के दिन
लगा लिया उन्हें सीने से जोश-ए-उल्फ़त में
ग़रज़ कि आ ही गया मुझ को प्यार ईद के दिन
कहीं है नग़्मा-ए-बुलबुल कहीं है ख़ंदा-ए-गुल
अयाँ है जोश-ए-शबाब-ए-बहार ईद के दिन
सिवय्याँ दूध शकर मेवा सब मुहय्या है
मगर ये सब है मुझे नागवार ईद के दिन
मिले अगर लब-ए-शीरीं का तेरे इक बोसा
तो लुत्फ़ हो मुझे अलबत्ता यार ईद के दिन
-अकबर इलाहाबादी
आई ईद व दिल में नहीं कुछ हवा-ए-ईद
ऐ काश मेरे पास तू आता बजाए ईद
क़ुर्बान सौ तरह से किया तुझ पर आप को
तू भी कभू तो जान न आया बजाए ईद
जितने हैं जामा-ज़ेब जहाँ में सभों के बीच
सजती है तेरे बर में सरापा क़बा-ए-ईद
-शैख़ जहूरूद्दीन हातिम
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती
- ग़ुलाम भीक नैरंग
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
- ज़फ़र इक़बाहासिल
उस मह-लक़ा की दीद नही
ईद है और हम को ईद नहीं
- बेखुद बदायुनी
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
शहद ओ शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज
- सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
कि माह-ए-ईद भी आख़िर है इन महीनों में
- मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो
और कहियो कि कोई याद किया करता है
- त्रिपुरारि
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