हम सभी की पहली शादी यूहीं कभी अकेले में हो जाती है, फालतू में ही हम बैंड बाजे वाली शादी को अपनी पहली शादी बोलते हैं ये शब्द है शब्दों के जादूगर दिव्ये प्रकाश दूबे जी के नए वाली हिंदी के नए जादूगर जिन्होंने हिंदी को पारम्परिक तरिके से हट कर लिखा और युवाओं में हिंदी के प्रति जोश पैदा करने वाला काम किया, अगर आपने इनकी कहानियाँ पढ़ी है तो आप भी समझते होंगे की ये अपने एक शब्द से कितनी गहराई तक उतरतें हैं और फिर उतारते ही चले जातें हैं। भरी भरकम शब्दों का इस्तेमाल किये बिना अपनी कहानी को यूँ प्रस्तुत करेंगे की बस आप खो ही जायेगा इनकी रचना में. कहते है वो कहानी बहुत खूब होती है जिनके अंत में आप बेचैन हो उठे, कि काश थोड़ी और लम्बी होती या खाहानी ख़तम न होती और उस कहानी का अंत आपको इतना उत्सुक कर दे कि क्या इसका अगला भाग आएगा। हिंदी में बेस्ट सेलर कि परम्परा को स्थापित करवाने में जिन यवा लेखकों का नाम शामिल है उसमे दिव्ये प्रकाश दूबे शुमार है। उनका जन्म 8 मई 1982 को लखनऊ में हुआ। आईआईटी रुड़की ऑफ़ इंजीनियरिंग से बीटेक कर इंजीनियर साहब को शब्दों का चस्का ऐसा लगा कि "मसाला चाय" और "शर्ते लागू" जैसी किताबें लिख डाली अपनी उन किताबों से युवाओ में अच्छा खासा नाम बना लेने के बावजूद बहुत समय तक यही माना जाता था कि दिव्ये प्रकाश दूबे ठीक ठाक कहानियाँ लिख लेते हैं लेकिन बाद में जब वो स्टोरी बाज़ी में कहानियां सुनाने लगे तो लगा कि नहीं, उनकी कहानियां तो बहुत ही अच्छी है. जब वो टेडएक्स में बोलने गए तो टशन टशन में हिंदी में बोल केर चले आये। उनकी "संडे वाली चिट्ठी" भी बहुत ज़्यादा पॉपुलर है। तमाम लिटरेचर फेस्टिवल, इंजीनियरिंग एवं एमबीए कॉलेज जाते हैं तो अपनी कहानी सुनाते सुनाते एक दो लोगों को लेखक बनने कि
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