14 वर्षों का वनवास खत्म करके व रावण का वध करने के बाद श्रीराम जी वापस अपने घर लौटे थे। इसलिए उनके आने की खुशी में अयोध्या वासियों ने अपने घर को सुंदर दीयों से सजाकर पहली बार दीपावली मनाई थी ।
ज्यादातर लोग दीपावली का त्यौहार लक्ष्मी माता को खुश करने के लिए मनाते हैं। हमारे हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी धन की देवी है और वही धन और समृद्धि की दाता भी हैं। इसलिए लोग अपने घर में धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए दीपावली के अवसर पर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। मां लक्ष्मी जी की पूजा भगवान गणेश के साथ की जाती है क्योंकि गणेश जी सुख समृद्धि के दाता हैं। इन दोनों की एक साथ पूजा करने से घर में धन और सुख का कभी अभाव नहीं होता है।
इस महाउत्सव के उपलक्ष्य में प्रस्तुत है कुछ दिवाली पर कविताएं :-
(i) "जगमग जगमग"
हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!,
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग
— सोहनलाल द्विवेदी
व्याख्या : इसमें कवि कहता है कि, हर घर-दर, बाहर-भीतर, नीचे-ऊपर, हर जगह सुघर है। उजियाला पग-पग है। जगमग-जगमग हो रहा है। छज्जों, छत, आलो, तुलसी के नन्हे थालियों में जगमग दीपक अंधेरे को ठग रहा है। पर्वतों, नदियों, नहरों की लहरों में तैरते हुए दीपक जगमग-जगमग लग रहे हैं। राजा-रंक के हो घर, दीपक हर घर में चल रहे हैं और कदम-कदम पर जगमग करते हुए दीपक दिवाली का सौंदर्य है।
(ii) "दिवाली का दीपक"
दिवाली का दीपक मौन नहीं
अपने उजियारे से कुछ बोल रहा
जानो अंग अंग इसका आपके लिए
राज उज्ज्जवलता के खोल रहा
दिवाली के दीये लौ कहे
जलो ऐसे की दे सको उजियारा
तुम हो आशाओं की लौ
दूर करो जहाँ का अँधियारा
कहे दीये का तेल
अपना सब कुछ न्योछावर कर दो
यों खुद के लिए जीना अच्छा नहीं
अपनों खातिर जान हथेली पर रख दो
बाती बोले सहन कर पीड़ायें अपारजीवन का होये उद्धार
जब बनेगा तेरा तन मन शोला
धमक उठेगा यह संसार
अब कुम्हार का अड्डा कहे
खुद को तुम समृद्ध बनाओ
और दूसरों को देने को खुशियां
इस को तुम जहाँ में लुटाओ
तो यह दीपक के मन का गीत
जन्म से उजियारे की चलाये रीत
इस रीत में ख़ुशी का है संगीतऔर छिपी है इसमें मानव की जीत
— लोकेश इंदौर
व्याख्या : दीपावली के दीपक की अपनी अनूठी कहानी है। दीये के चार भाग होते हैं। जो चहुंओर से मानव को प्रेरणा देते हैं। दीये की बाती, लौ, तेल और स्वयं दीये का अपना अलग ही सन्देश इस कविता के माध्यम से प्रस्तुत है। यह कविता बताती है कि लौ सतत जलते हुए संसार को उजियारा देने की प्रेरणा देती है अर्थात अपने कर्म के माध्यम से संसार को अलौकिक करने का सन्देश देती है। वही बाती खुद जलकर जहाँ में ख़ुशी फैलाने का तो तेल खुद को समाप्त कर अपना धर्म निभाने का। वह मिटटी का दीया समृद्ध बनकर लुटाने एक सन्देश देता है।
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