
‘आधुनिक बांग्ला साहित्य’, ‘कवि श्री मधुसूदन’, ‘साहित्य विचार’ और ‘विचित्र कथा’ जैसे समालोचकीय पुस्तकों के लेखक मोहितलाल मजुमदार का जन्म आज ही के दिन १८८८ में कांचरापारा में नादिया जिले ,उनके ननिहाल में हुआ था। वहीं बात करें उनके पैतृक गाँव की तो वो हुगली जिले का बालागढ़ गांव था। बंगाली भाषा के सुप्रसिद्ध कवि मोतीलाल प्रारम्भ में एक कवि परन्तु बाद में एक साहित्यिक आलोचक के रुप में जाने जाने लगे। १९०८ में मजूमदार ने रिपन कॉलेज से कला में सन्नाताक की उपाधि प्राप्त की। अपनी कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद वे कोलकाता हाई स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बहाल हुए। जिसके बाद उन्होंने ढाका विश्वविद्यालय में संस्कृत और बांग्ला साहित्य के प्रध्यापन का कार्य किया।
साहित्यिक यात्रा
मजूमदार के परिवार में किसी को भी साहित्य के प्रति कोई विशेष रूचि नहीं थी पर मजुमदार ने अपनी व्यक्तिगत प्रवृत्ति के आधार पर इस क्षेत्र में रूचि लेनी शुरू की। जिसके बाद उन्होंने साहसी पत्रिका के माध्यम से अपनी साहित्यिक यात्रा की शुआत की। साहसी पत्रिका में अपने योगदान के बाद उन्होंने भारती और शनिबेरार चिठ्ठी जैसी पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया। मोहितलाल मजूमदार जी को अरबी व् फ़ारसी का अच्छा ज्ञान था इन दोनों भाषाओँ का वे अपनी कृत्यों में भी उपयोग करते थे। बात करें उनकी लेखन वस्तु की तो प्रारंभिक कविताएं सुखदायक और प्रेमबद्ध लय में लिखी गयीं है साथ ही एक सपने देखने वाले युवा के दुःख और आकांक्षाओं को दर्शाती है। मोहितलाल के ऊपर रवीन्द्रनाथ का गहरा प्रभाव था जो उनकी कविताओं के माध्यम से भी देखीं जा सकती हैं हांलाकि बाद में उन्होंने अपने आप को नामचीन कवियों और लेखकों से दूर कर लिया।
मजूमदार पर चर्चा करते समय उनके काव्य लेखन से अधिक उनकी समालोचकीय दृष्टि पर बात करना ज्यदा जररुरी है क्यूंकि मोहितलाल ने एक साहित्यिक आलोचक के रूप में ,मानको को निर्धारित करने और साहित्य के साथ साथ कला की समस्याओं को प्रस्तुत करने का एक प्रयास किया है ।
काव्य :
स्वपन पसारी (१९२१)
बिशोरिनि
समर गरल
हेमंता गोधूलि
रोबी प्रदक्षिण
निबंध :
आधुनिक बांग्ला साहित्य
कोबी श्री मधुसूदन
साहित्य बितान
मोहितलाल मजूमदार द्वारा लिखी सुप्रसिद्ध कविता काल बैशाखी (কাল-বৈশাখী) आपके समक्ष प्रस्तुत है :
কাল-বৈশাখী কবি মোহিতলাল মজুমদার
মধ্যদিনের রক্ত-নয়ন অন্ধ করিল কে! ধরণীর 'পরে বিরাট ছায়ার ছত্র ধরিল কে !
কানন আনন পাণ্ডুর করি'
জল-স্থলের নিঃশ্বাস হরি আলয়ে-কুলায়ে তন্দ্রা ভুলায়ে গগন ভরিল কে !
আজিকে যতেক বনস্পতির ভাগ্য দেখি যে মন্দ,
নিমেষ গণিছে তাই কি তাহারা সারি-সারি নিস্পন্দ
মরুৎ-পাথারে বারুদের ঘ্রাণ এখনি ব্যাকুলি’ তুলিয়াছে প্ৰাণ ?
পশিয়াছে কানে দুর গগনের বজ্রঘোষণ ছন্দ?
হেরি যে হোথায় আকাশ-কটাহে ধুম্র-মেঘের ঘটা,
সে যেন কাহার বিরাট মুণ্ডে ভীম-কুণ্ডল জটা!
অথবা ও কি রে সচল-অচল---
ভেদিয়া কোন্ সে অসীম অতল ধাইছে উধাও গ্রাসিতে মিহিরে, ছিঁড়িয়া রশ্মি-ছটা!
ওই শোন তার ঘোর নির্ঘোষ,
দুলিয়া উঠিল জটাভার সুরু হয়ে গেছে গুরু-গুরু রব------- নাসা গর্জন ঝঙ্কার!
পিঙ্গল হল গল-তলদেশ,
ধুলি-ধুসরিত উন্মাদ-বেশ----- দিবসের ভাগে টানিয়া খুলিছে বেণীবন্ধন সন্ধ্যার!
অঙ্কুশ কার ঝলসিয়া উঠে দিক হ'তে দিক-অন্তে দিগ্ বারণেরা বেদনা-অধীর বিদারিছে নভ দন্তে !
বাজে ঘন ঘন রণ-দুন্দুভি, . ঝড়ে সে আওয়াজ কভু যায় ডুবি',
যুঝিতেছে কোন্ দুই মহাবল দ্যুলোকের দুর পন্থে!
হের, ফিরে চলে সে রণ-বাহিনী বাজায়ে বিজয়-শঙ্খ,
আকাশের নীল নির্মল হ'ল—— ধৌত ধরার পঙ্ক |
বায়ু বহে পুন মৃদু উচ্ছালে!
নদী উথলিছে কুলুকুলু ভাষে, আলো-ঝলমল বিটপীর দল নিঃশ্বাসে নিঃশঙ্ক
নব বর্ষের পূর্ণ-বাসরে কাল-বৈশাখী আসে,
হোক্ সে ভীষণ, ভয় ভুলে যাই অদ্ভুত উল্লাসে |
. ঝড় বিদ্যুৎ বজ্রের ধ্বনি দুয়ার-জানালা উঠে ঝন্ ঝনি',
আকাশ ভাঙিয়া পড়ে বুঝি, তবু প্রাণ ভরে আশ্বাসে
চৈত্রের চিতা-ভস্ম উড়ায়ে জুড়াইয়া জ্বালা পৃথ্বীর,
তৃণ-অঙ্কুরে সঞ্চারি' রস, মধু ভরি' বুকে মৃত্তি'র,
যে আসিছে আজ কাল-বৈশাখে
. শুনি' টঙ্কার তাহার পিনাকে
চমকিয়া উঠি --- তবু জয় জয় তার সেই শুভ কীর্তির!
এত যে ভীষণ, তবু তারে হেরি' ধরার ধরে না হর্ষ, ওরি মাঝে আছে কাল-পুরুষের সুগভীর পরামর্শ |
নীল-অঞ্জন-গিরিনভি কায়া, নিশীথ-নীরব ঘন-ঘোর ছায়া
ওরি মাঝে আছে নব-বিধানের আশ্বাস দুর্ধর্ষ |
-মোহিতলাল মজুমদার
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