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एक एक तिनका ज़ोर कर आशियाना बनाता हैं परिंदा |
इतना आसान कहां हैं इस जहां में रहना जिंदा ||
सच बोलों तो गर्दन पर लटका दिए जाते हैं फांसी का फंदा |
झूठो के शहर में भला कहां चलता है सच का धंधा ||
बोझ ढोते ढोते कहां तकता है किसानों का कंधा |
नेता खुद को रोक नहीं पाता फसल पर करना धंधा ||
कहीं कोई आ कर टकरा न जाए लैंप लें कर घर से निकलना है अंधा |
समय समय पर जाती धर्म के नाम पर नेता करवातें रहता है जगह जगह पर दंगा ||
सिर्फ कहने को मन चंगा तो कठौती में गंगा |
फिर क्यों इतने बड़ी संख्या में लोग नहाने जाते हैं गंगा ||
चोरों के सिपाही चलता है लेकर हाथों में डंडा |
भला कहां रहता है लोगों के मिजाज ठंडा ||
हम सभी हैं इस जहां में ईश्वर का बन्दा |
हर कोई कहां होता गुना़ह कर के शर्मिंदा ||
इतना आसान थोरे ही है जहां में रहना जिंदा |
ना जाने कितने बार मरता पड़ता है रहने के लिए जिंदा ||
- कविराज
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