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खुबसूरत है हर वक्त हर लम्हा
जो चाहता है और खिलना बिखरना
संजोये याद की आबाद बस्ती
रुका दरिया किनारे मेरी कस्ती
बड़ी कश्मकश है गुमशुदी का
जो खोने को ढूँढता कोना
और फिर यूँ कि चाहे बस बहती रहे ये हस्ती
तरस कर तन्हाई भी सिमट जाती है
मगर उन आँखों के नजारों मे
ये चेहरा अब नही ठहरता
मै कमबख्त अब भी आस मे हूँ
कि उन निगाहों को यूँ ही कभी मेरा रस्ता मिलेगा
और फिर मंजिल का आबाद समन
जो चाहता है और खिलना बिखरना
संजोये याद की आबाद बस्ती
रुका दरिया किनारे मेरी कस्ती
बड़ी कश्मकश है गुमशुदी का
जो खोने को ढूँढता कोना
और फिर यूँ कि चाहे बस बहती रहे ये हस्ती
तरस कर तन्हाई भी सिमट जाती है
मगर उन आँखों के नजारों मे
ये चेहरा अब नही ठहरता
मै कमबख्त अब भी आस मे हूँ
कि उन निगाहों को यूँ ही कभी मेरा रस्ता मिलेगा
और फिर मंजिल का आबाद समन
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