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सब्र -ए -सदर का कोई शहर से आया है
जमाने मे सराबोर होकर अपने घर आया है
खलिश खूब थे जहन के जर्रे जर्रे में
तख्त के दिवारों मे दफ्न होकर अपने घर आया है
इजाजतन मंजूर नही था किसी को
फिर भी सब छोड़कर ,अपने घर आया है
इतने सख्त थे रास्ते लौटने के
कि काँटों के बाजार में खुद का सौदा करके, अपने घर आया है
जमाने मे सराबोर होकर अपने घर आया है
खलिश खूब थे जहन के जर्रे जर्रे में
तख्त के दिवारों मे दफ्न होकर अपने घर आया है
इजाजतन मंजूर नही था किसी को
फिर भी सब छोड़कर ,अपने घर आया है
इतने सख्त थे रास्ते लौटने के
कि काँटों के बाजार में खुद का सौदा करके, अपने घर आया है
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