Share0 Bookmarks 48523 Reads2 Likes
अंधेरों की ओट मे
उजालों की पोटली
दबे एक संदूक से
सूराख अपनी खोजती
न दर्द का सवाल है
न मर्म का हिसाब है
जरूरतों के रात मे
सुबह बेमिसाल है
रोकने से रुकती नही
टोकने की आदत नही
निःशब्द हूँ ...
अगाध मे
निरस मेरे अब शब्द है
मोह के विरक्त की
टूटती वो हर घड़ी
जो सूर्य के प्रमाण पर
विश्वास से मुँह मोड़ती
सत्य भ्रम के छाँव
उजालों की पोटली
दबे एक संदूक से
सूराख अपनी खोजती
न दर्द का सवाल है
न मर्म का हिसाब है
जरूरतों के रात मे
सुबह बेमिसाल है
रोकने से रुकती नही
टोकने की आदत नही
निःशब्द हूँ ...
अगाध मे
निरस मेरे अब शब्द है
मोह के विरक्त की
टूटती वो हर घड़ी
जो सूर्य के प्रमाण पर
विश्वास से मुँह मोड़ती
सत्य भ्रम के छाँव
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments