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ये उलफत रू-ब-रू होती, वफाऐं मैं रचा लेता,
इश्क-ए-दौर की गलियाँ, मुखातिब हैं, नचा लेता।
मोहब्बत की गली में गर कदम का शोर भी होता,
जो टूटे हैं कई आशिक, इन्हें भी मैं बचा लेता।।
- © अनुराग तिवारी
इश्क-ए-दौर की गलियाँ, मुखातिब हैं, नचा लेता।
मोहब्बत की गली में गर कदम का शोर भी होता,
जो टूटे हैं कई आशिक, इन्हें भी मैं बचा लेता।।
- © अनुराग तिवारी
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