योग्यता है ठोकरें खाती कहाँ कोई ठिकाना?
दुष्टता ही सब जगह बैठी बनाकर के बहाना !
अर्थ की अर्थी उठा दी व्यर्थ चिंतन व्यर्थ वाणी,
रो रहा अनुपात अब है पक्षपातों का ज़माना !!
~ दिव्य
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