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अश्रुओ के किनारे तो कुछ भी नहीं,
ज्ञान दीपक सा तुमने दिखाया मुझे।
आज के इस दिवस सोचता है हृदय,
ज्ञान जीवन का तुमने दिखाया मुझे।
धरती दुल्हन बनी है तेरा ये नगर,
काव्य के इस धरा का श्रोता हूं मैं।
तेरी भूमि के कण कण में खोया हृदय,
ज्ञान तर्पण का तुमने सिखाया मुझे।
आज के इस दिवस सोचता है हृदय,
ज्ञान जीवन का तुमने सिखाया मुझे।
काव्य के इस शिखर का श्रोता हूं मैं,
समर का चिंतन तुम्ही ने सिखाया मुझे।
रश्मियों का विनय जब भी पढ़ता है मन,
दिनकर की धरा को मैं करता नमन।
गांव गंगा किनारे देखे है नयन,
दिनकर की धरा को मैं कर
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