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कुछ इस प्रकार लिखा है मैंने,
कुछ इस प्रकार सुना है तुमने।
जैसे पतझर में गिरते पत्ते,
बरसात की बूंदो का गिरना।
कुछ इस तरह पढ़ा है तुमने,
जैसे बिल्ली और चूहें की दोस्ती,
शेर को शांत सा पाना ।
कुछ इस तरह चाहा है तुझे,
प्रकृति की गोद में,
एक खिलखिलाता बच्चे की तरह।
कुछ इस कदर संभाला है तुझे,
जैसे नदियों का समुद्र में मिलना,
शहर के शोर सराबो से दूर,
कुछ इस तरह रखा है तुझे,
जैसे किताबों में रखे फुल,
स्वप्न से रूबरू होता।
कुछ इस कदर बनाया है तुझे,
जैसे कुम्हार के नाजुक घड़े,
जैसे माली का बाग में टहलाना,
जैसे घास पर खाली पांव चलना।
कुछ इस कदर सजाया है तुम्ह
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