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कुछ इस प्रकार लिखा है मैंने,

कुछ इस प्रकार सुना है तुमने।

जैसे पतझर में गिरते पत्ते,

बरसात की बूंदो का गिरना।

कुछ इस तरह पढ़ा है तुमने,

जैसे बिल्ली और चूहें की दोस्ती,

शेर को शांत सा पाना ।

कुछ इस तरह चाहा है तुझे,

प्रकृति की गोद में,

एक खिलखिलाता बच्चे की तरह।

कुछ इस कदर संभाला है तुझे,

जैसे नदियों का समुद्र में मिलना,

शहर के शोर सराबो से दूर,

कुछ इस तरह रखा है तुझे,

जैसे किताबों में रखे फुल,

स्वप्न से रूबरू होता।

कुछ इस कदर बनाया है तुझे,

जैसे कुम्हार के नाजुक घड़े,

जैसे माली का बाग में टहलाना,

जैसे घास पर खाली पांव चलना।

कुछ इस कदर सजाया है तुम्हे,जैसे वर्षा के बाद इंद्र धनुस,

जैसे आसमान में दौराते बादल।

कुछ इस कदर बसाया है मैंने

जैसे रात में टीमटीमाते तारे,

जैसे गांव से शहर तक का सफर,

जैसे रेलगाड़ियों का चलना,

जैसे पतंग का अनंत आकाश में होना।

कुछ इस प्रकार समझो तो,

अपने से मिलाया है मैंने,

जैसे कोई लौट आता है शाम होते ही,

जैसे कोई लोड़िया सुनाता हो,

जैसे कोई पुकार रहा हो।एक गीत की तरह,

स्वप्न दर्शी बना।

कुछ इस तरह समझाया है मैंने जैसे आसाढ़ का बरसाना,

जैसे कवियों की कविता,

जैसे कहानी का शीर्षक,

कुछ इस प्रकार

बस कुछ इस प्रकार ।

कवि अमन कुमार शर्मा

हिंदी विभाग सदस्य

भगालपुर विश्वविद्यालय

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