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"बीते दिन की बातों से,
अगर बहता हो अश्रुजल।
फिर युग परिवर्तन होगा कैसे,
जब तम में डूबा संसार सकल।
नयनों के अमृत कण से,
करना सिंचित अपना पुरुषार्थ।
स्नेहिल धारा फूटे मन से,
दया धर्म में बनो कृतार्थ।"
- अगम मिश्र
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