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रात आँखों में जब नींदें नहीं आई

kaushal kumar joshikaushal kumar joshi February 4, 2023
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रात आँखों में फिर नींदें नहीं आई

कुछ ख़याल थे जो ख़्वाब बनने की ज़िद में थे,

बड़ी कश्मकश में थी सब दीवारें,

के जैसे नींद मेरी आँखों से उतर कर इनमें समा जाएगी,


पर ना तो जल्दी मुझे थी ना नींद को,

तो फिर वहीं उस जगह चल दिए मैं और मेरे ख़याल,

इस बार हमने पहले से ज़्यादा बातें की,

और पिछली बार की तरह इस बार भी,

जब तुमने मुझसे मेरी कापी माँगी थी,

मैंने बातों ही बातों में कुछ इशारे करने की कोशिश की,

पर बुरा हो इस मासूमियत का,

तुमने समझने से साफ़ इनकार कर दिया,

और मैं मुरझाए दिल को दिलासा देता हुआ,

वापस मेरे कमरे में आ गया,

नींदें तलाशने की झूठी कोशिश करने,


ख़ैर!.. नींदें आज ज़रा ख़फ़ा सी थी ,

या फिर शायद इम्तिहान ले रहीं थी मेरा,


उस पर दिल में वो कुलबुलाते ख़याल,

किसी ज़िद्दी बच्चे के जैसे मुँह फुलाने लगे,

ज़िद थी कि ये ना सही

किसी और ख़्वाब में ही ढल जाएँ,

मैं तो थक चुका था इसलिए हार गया,

इस बावत इस बार हम उस बाग़ में थे,

जहाँ कुछ वक़्त बाद फिरसे देखा था तुम्हें,


इस बार ख़यालों ने फिर एक ज़िद की,

कहते थे इस अधूरे मंज़र को पूरा करेंगे,

तो फिर बात कुछ यूँ आगे बढ़ी,

मुसलसल इंतज़ार के बाद तुम आ ही गयी,

मैंने छुपी निगाह से तुम्हें देख भी लिया था,

पर जताया नहीं,

और फिर जब तुम मेरे बग़ल से गुज़री,

तो मैने मुस्करा कर के तुम्हें देखा,

जवाब में तुमसे वो तल्खियाँ नसीब हुई,

पर ज़रा सी देर बाद एक टुक़ मुस्करा कर तुमने,

मेरे ख़यालों की परवाज़ को और ऊँचा कर दिया,


इस तरह से एक छोटा सा ख़याल ख़्वाब में तब्दील हुआ,

और मैं गहरी साँस भरता हुआ,

फिर से मेरे कमरे में आ गया,


पर नींदें तो शायद आज इरादा कर के बैठीं थी,

या ख़यालों की ज़िद से दब कर,

मुमकिन है कहीं दुबक गयी होंगीं!


इससे पहले कि मैं समझ पाता कुछ,

ख़यालों ने कुछ और ही मंज़र बना डाला,


अब के हम एक अजीब सी ज़गह थे,

सुबह की हल्की हल्की धूप खिली थी,

बाँहें हिला कर पेड़ रुक रुक कर पंखा झलते थे,

हवाएँ कुछ ख़ुश्क और सर्द भी थी,

शायद सर्दियों की सुबह रही होगी,

फूलों ने आस पास बहुत सारी बस्तियाँ बसा रखी थी,

कुछ एक फ़ूल हवा के लहज़े में

अपना लहज़ा मिलाकर झूमते थे,

जैसे कि नन्हें बच्चे कोई गीत गाते हुए,

एक ही अन्दाज़ में झूमा करते हैं,

गुलों की इन ख़ुशहाल बस्तियों के बीच,

किसी की मीठी सी हँसी सुनाई पड़ती थी

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