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मैंने माँ का चेहरा देखा,
चिंता का सा पहरा देखा,
थकी हुई आँखों में प्रति पल,
आशाओं को ठहरा देखा
माँ ने दुःख के दिन भी देखे,
कुछ अपनों के बिन भी देखे,
पर अपनों की खातिर उसने,
सपना रोज़ सुनहरा देखा
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