
Share2 Bookmarks 531 Reads10 Likes
हूँ तनहा-तनहा फिर भी, कुछ सवालों से घिरा हूँ मैं,
उसे क्यूँ आँख ने खोया, जब उसे दिल ने पाया था?
क्यूँ मैंने दिल लगाया था, क्यूँ मैंने दिल लगाया था?
जो मेरे ख़्वाब कामिल होने वाले ही नहीं थे तो,
क्यूँ मैंने ख़्वाब देखे और क्यूँ सपना सजाया था?
क्यूँ मैंने दिल लगाया था, क्यूँ मैंने दिल लगाया था?
जिसे पाना मुक़द्दर में नहीं था मेरे ए परवर!
किसी ऐसे ने मेरा क्यूँ खुदाया दिल चुराया था?
क्यूँ मैंने दिल लगाया था, क्यूँ मैंने दिल लगाया था?
लफ़्ज़ वो दिल में जो रह-रह के हर दम छटपटाता था,
कभी बन के सदा, वो क्यूँ नहीं होंठों पे आया था!
क्यूँ मैंने दिल लगाया था, क्यूँ मैंने दिल लगाया था?
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments