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आँखे बेपर्दा न कीजिये बाजारों में,
दीदारे चाँद उतर आता है गलियारों में ।।
प्रारब्ध मुकम्मल हो उन्हें हर दुआओं में,
जिन्हें देखा है खिलते कभी गुलज़ारो में।।
✍️ चिदानंद कौमुदी
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