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जीवन का सार

Kartik VermaKartik Verma May 9, 2023
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किसी विराने,

किसी मरुस्थल,

का हिस्सा हूं मैं

सुखा पड़ा ,

ज़मीन का कोई हिस्सा हूं मैं


कीमत क्या , 

मेरे होने का

ना होने का ,

कोई जवाब नहीं


मौका मिले

पानी पड़े,

नम होउ 

तो कोई बात बने


नजर पड़े

किसी कुम्हार का ,

मार पड़े

किसी हथियार का ,

बनाए बिगाड़े 

कुछ तो करे

ज्यादा नही थोड़ा सही ,

कुछ तो क़ीमत मे इज़ाफा करे


फिर बिक जाऊं किसी हाथ में

थोड़ी कारीगिरी दिखाएं

वह भी किसी रात में

कीमत बढ़े 

फिर सज जाऊ

किसी मकान मे


लुभाऊ कुछ दिन मालिक को

फिर फेका जाऊ

उन्ही हाथो से

किसी वीरान मे


खाक में मिल

फिर खाक हो जाऊं

मूल में मिलकर

आबाद हो जाऊं


यही अंत नहीं मेरा

मैं फिर से इसे दोहराऊ गा ,

इसमें मैं, मैं हूं

समझो इसको तो कोई बात बने

जीवन का सार यही है ,

मानो इसको तो कोई बात बने

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