प्रकृति का नाम जब भी हमारे समाने आता है तो सबसे पहले हमारे मन में आस पास के पेड़-पौधों का ख्याल आता है। जो की हमारे वजूद के होने का एक ठोस सबूत है।
लेकिन सवाल यह है कि "हम इनके बारे में कितना सोचते है और हम इनकी परिस्थिति को सुधारने के लिए क्या कर रहे है"?
कहा जाता है कि हमारे वजूद को जिंदा रखने में इनका बहुत बड़ा हाथ है।
"जैसे एक पौधें की जड़े समय के साथ जमीन की गहराइयों को छूती जाती है वैसे ही वो हमारे वजूद को और गहरा करती चली जाती हैं।"
एक पौधें का,एक पेड़ में बदलने तक का सफर, किसी भी इंसान की जिंदगी को अच्छे से दर्शाता है।
लेकिन अब इंसानी वजूद ख़तरे में है क्योंकि आज कल जिस तरह पेड़ो को काटा और उनके वजूद को खत्म किया जा रहा है।यह बहुत ही दर्दनीय है।
लेकिन हम भूल जाते है कि उनके होने से ही हमारा वजूद है।
हम उन्हें खत्म नहीं कर रहें बल्कि हम खुद को खत्म कर रहे है।
उन पर हर एक वार हमारी इंसानियत के मरने का सबूत है।
इसलिए हमें ही कुछ करना होगा अपनी इंसानियत को जिंदा रखने के लिए क्योंकि हम उन्हें जिंदा रख के उनकी सुरक्षा नहीं करेंगे बल्कि हम ऐसे अपने वजूद की सुरक्षा करेंगे।
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