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यूं ही नहीं इन वादियों में ये सुरूर है
कुछ तो करीब से गुजरा जरूर है
इस पानी सा बहता मेरा मन
और ये सर्द हवांए
हाथो में हाथ लिए बैठा मैं वो खुद एक नूर है
छुपा आसमानो में चांद जाकर
यूं बादलो की आड़ में
कुछ शक जो देख मेरे नूर को
उसे खुद पर हुआ जरूर है
रिम झिम रिम झिम बरसता बादल
छूने को इसको आसमानो से होता फिर खुद क्यूं दूर है
ये सफर जो गुजरता बाहों में इसके
पिघलता खुद बादल फिर मेरा क्या कसूर है
सफर वादियों से घिरा और ये सर्द हवायें
भूला ज़िंदगी संग इसके कुछ अलग सा फितूर है
यूं ही नहीं इन वादियों में ये सुरूर है
कुछ तो करीब से गुजरा जरूर है
इस पानी सा बहता मेरा मन और ये सर्द हवाएं
हाथो में हाथ लिए बैठा मैं वो खुद एक नूर है
हाथो में हाथ लिए बैठा मैं वो खुद एक नूर है।
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