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डुबाने को पानी से ज्यादा उसकी अदाएं थी
न जाने वो परी किस ही शहर से आई थी
दूबते रहे सब आने जाने वाले वहाँ
महफिल ही कुछ ऐसी उन्होने सजायी थी
उफ्फ वो चेहरा न जाने कहाँ से
तराश कर लायी थी
उस जल मे जब वो परी आयी थी
नमकीन पानी में भी मीठास भर आई थी
कम्बक्ख्त छूने को बदन को उसके
उस पानी को शर्म नहीं आई थी
जब पानी ने उसकी खुली जुल्फे लेहेरो से अपनी लहरायी थी
में डूब गया था देख कर उस पल भर में उसको
पर उस पानी में भी उसकी खुशबू महक आई थी
कैसे बताऊ सुनी हुई जलपरी की कहानी सच हो आई थी
कैसे बताऊ सुनी हुई जलपरी की कहानी सच हो आई थी।
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