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माँ - यह शब्द सुन कर
होती हैं दिल में खन खन ,
इन शब्दों में बसी हैं जन्नत
मांगते हैं सब लोग इसी की मन्नत ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।
जिसने रखा नौ माह अपनी कोख में
जिसने झेले कष्ट सिर्फ मेरे लिए ,
नहीं मांगती हैं कुछ बदले में
सिवाए लंबी उम्र और दुआएं मेरे लिए ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं।
जब चोट लगे तो
मुख से सिर्फ निकले माँ ,
जब उल्लास हो तो
याद आती हैं सबसे पहले माँ ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।
जो खाती हैं खाना सबसे अंत में
ताकि मेरा पेट भर सके आरंभ में ,
एक रोटी मांगो तो दो देती हैं
खाली पेट रहो तो क्रोध करती हैं ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।&nb
होती हैं दिल में खन खन ,
इन शब्दों में बसी हैं जन्नत
मांगते हैं सब लोग इसी की मन्नत ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।
जिसने रखा नौ माह अपनी कोख में
जिसने झेले कष्ट सिर्फ मेरे लिए ,
नहीं मांगती हैं कुछ बदले में
सिवाए लंबी उम्र और दुआएं मेरे लिए ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं।
जब चोट लगे तो
मुख से सिर्फ निकले माँ ,
जब उल्लास हो तो
याद आती हैं सबसे पहले माँ ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।
जो खाती हैं खाना सबसे अंत में
ताकि मेरा पेट भर सके आरंभ में ,
एक रोटी मांगो तो दो देती हैं
खाली पेट रहो तो क्रोध करती हैं ,
क्योंकि भाव ही ऐसे हैं
मेरी माँ ही ऐसी हैं ।&nb
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