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जहां देखो झूठ की सीढ़ी मिलेगी
झूठ फरेब पर दुनिया कायम दिखेगी,
लगता हैं सच से लोग बहुत घबराते हैं
तभी झूठ की चादर में पैर पसारते हैं।।
सब अलग वजहों में सिमट कर
इस सीढ़ी पर जरूर चढ़ते हैं ,
आगे का परिणाम न सोच कर
न उतरने की ठान लेते हैं।।
कोई पैर फिसलकर गिरता हैं
कोई ठोकर खाते हुए उतरता हैं
किसी की ज्यों ही टूट भिकरती हैं
फिर सीख न चढ़ने की मिलती हैं।।
उस सीख को पनाह लोग नहीं देते हैं
तभी झूठ की चादर में पैर पसारते हैं
केवल खुद के मतलब के लिए जीते हैं
सब कुछ नजरंदाज कर आगे बढ़ते हैं।।
इन सीढ़ियों की संख्या इतनी बढ़ गई हैं
की पनाह सच को कही मिलती नहीं हैं,
मुफ्त का किराएदार बन ये हर जगह मिलेगी
तभी झूठ फरेब पर दुनिया कायम दिखेगी।।
इन सीढ़ियों पर चलना सबको भाता हैं
झूठ से एक इंसान दूसरे को गिराता हैं,
सीढ़ी को बदलना सबके शील में नहीं
आज का मानव कहीं गिरगिट तो नहीं?
~ कनिष्का गर्ग
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