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विजयवाड़ा के बेन्जसर्किल के
होटल की पाँचवी मंजिल से देखते हैं
सड़क पर दौड़ती भागती गाड़ियाँ
और ऊँचे-ऊँचे काम्प्लेक्स के पार
दीखते हैं ऊँचे-ऊँचे टीले
जैसे शहर को उन्होंने घेर कर सुरक्षित कर लिया हो
अपनी गोद में बसने को जगह दे दिया हो।
दर-अस्ल ये टीले नहीं पहाड़ियों की श्रृंखला हैं जो कृष्णा नदी की धारा के साथ तालमेल करते हुए
प्रहरी की तरह खड़े हैं।
इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर कनक दुर्गा माँ का मंदिर
उगते सूरज के मानिंद उजियारा करते हुए दिखता है।
मैं ख़ुश हूँ यह सब देखकर
झुँझलाहट को छोड़कर
आकाश की ओर देखता हूँ
पौराणिक कथा के पात्रों के बीच
ख़ुद को खड़ा देखता हूँ।
ज़मीन पर अपने जन्म से
अपने कद के थोड़ा-थोड़ा बढ़ते हुए
मस्तिष्क में
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