
विजयवाड़ा के बेन्जसर्किल के
होटल की पाँचवी मंजिल से देखते हैं
सड़क पर दौड़ती भागती गाड़ियाँ
और ऊँचे-ऊँचे काम्प्लेक्स के पार
दीखते हैं ऊँचे-ऊँचे टीले
जैसे शहर को उन्होंने घेर कर सुरक्षित कर लिया हो
अपनी गोद में बसने को जगह दे दिया हो।
दर-अस्ल ये टीले नहीं पहाड़ियों की श्रृंखला हैं जो कृष्णा नदी की धारा के साथ तालमेल करते हुए
प्रहरी की तरह खड़े हैं।
इंद्रकीलाद्री पहाड़ी पर कनक दुर्गा माँ का मंदिर
उगते सूरज के मानिंद उजियारा करते हुए दिखता है।
मैं ख़ुश हूँ यह सब देखकर
झुँझलाहट को छोड़कर
आकाश की ओर देखता हूँ
पौराणिक कथा के पात्रों के बीच
ख़ुद को खड़ा देखता हूँ।
ज़मीन पर अपने जन्म से
अपने कद के थोड़ा-थोड़ा बढ़ते हुए
मस्तिष्क में उगते टीले को देखता हूँ।
मुझे महसूस होता है
संसार में चीज़ों के बीच
डूबी हमारी इन्द्रियाँ
ख़ुद ही टीले बनाती हैं
फिर उस पर बैठकर स्थिर हो जाती है।
पर अस्थिर है यह स्थिरता
इसीलिए,
जब दिनभर रंग बदलता है टीला
तो जीवन दिखता है रंगीला।
पहाड़ी पर खड़े होकर
मलेश्वर देव के दाईं ओर बैठी माता को
सातों रंग भेंटकर माँगता हूँ इशारा
भवानी आइलैंड के
एक छोर से दूसरे छोर तक चलता हूँ
एकटक इंद्रकीलाद्री पर्वत को तकता हूँ
मेरे साथ-साथ चलते हुए
कृष्णा नदी की जलधारा
दिखाती हैं किनारा।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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इमेज -कृष्णा नदी विजयवाड़ा आन्ध्रप्रदेश
Kamini Mohan
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