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उद्योग के जन्म की चाह में,
उत्साह और अलस के बीच उमंग रहती है।
उमड़ते हुए मनभावन तरंग में,
बची, बची-सी एक उम्मीद रहती है।
मुलायम सुबह से मखमली शाम तक,
स्नेह के लगातार जन्म लेते रहने की संभावना रहती है।
देह से उठती हूक को पढ़कर बिसार देने तक,
स्पन्दन के रिक्त-स्थान में अलस बची रहती है।
यक़ीन से भरने की कामना और ज़रा-सी ज़रूरत, रिसते ज़ख़्म को झुठलाती रहत
उत्साह और अलस के बीच उमंग रहती है।
उमड़ते हुए मनभावन तरंग में,
बची, बची-सी एक उम्मीद रहती है।
मुलायम सुबह से मखमली शाम तक,
स्नेह के लगातार जन्म लेते रहने की संभावना रहती है।
देह से उठती हूक को पढ़कर बिसार देने तक,
स्पन्दन के रिक्त-स्थान में अलस बची रहती है।
यक़ीन से भरने की कामना और ज़रा-सी ज़रूरत, रिसते ज़ख़्म को झुठलाती रहत
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