
Share0 Bookmarks 101 Reads2 Likes
तुम कहते हो बार-बार नहीं-नहीं,
मुझे भी हाँ सुनने की आदत नहीं।
हँसी नसीब नहीं ख़ुशी का ए'तिबार नहीं
ज़िंदगी ना कह दे तो कोई हवा-ख़्वाह नहीं।
कितने दहर बीते कोई ख़बर नहीं
दर-ब-दर सफ़र करना बसर नहीं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
हवा-ख़्वाह : शुभ चिंतक, मित्र
मुझे भी हाँ सुनने की आदत नहीं।
हँसी नसीब नहीं ख़ुशी का ए'तिबार नहीं
ज़िंदगी ना कह दे तो कोई हवा-ख़्वाह नहीं।
कितने दहर बीते कोई ख़बर नहीं
दर-ब-दर सफ़र करना बसर नहीं।
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।
शब्दार्थ:
हवा-ख़्वाह : शुभ चिंतक, मित्र
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments