
Share0 Bookmarks 49 Reads1 Likes
मेरी साँसे:
झोंका है प्राण का आती और जाती हैं
समय की सीमा में बंधकर
काल का हलफ़नामा पेश कर जाती हैं
टिकाऊ है
पर टिक कर रह नहीं पाती हैं।
हवाओं से मेल करना है इनकी आदत
बस चलते रहना है इनकी फ़ितरत
इन्हें रास नहीं आता ठहरना
कुम्भ को भरकर थोड़ा जो कभी ठहर जाती है
प्रबल वेग से हवाओं में
बस घुल ही जाना चाहती है।
क़ैद होना इन्हें नहीं क़बूल
पर इन्हें
अस्थि और मज्जा में शरण लेना पड़ता है
सहस्त्र नाड़ियों में विचरण करना पड़ता है
देह को दुरुस्त रखने के लिए ऑक्सीजन को लेना
और कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ना पड़ता है।
इनका आख़िरी पड़ाव है कहीं नहीं
कम या ज़्यादा टिकाऊपन की
कोई बात भी नहीं।
देह का आधार हो या
कि साँसों का व्यापार!
हम चाहे या न चाहे
करना पड़ता है स्वीकार
चलते रहने में है टिकाऊपन
चलने से ही चलता है संसार।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
झोंका है प्राण का आती और जाती हैं
समय की सीमा में बंधकर
काल का हलफ़नामा पेश कर जाती हैं
टिकाऊ है
पर टिक कर रह नहीं पाती हैं।
हवाओं से मेल करना है इनकी आदत
बस चलते रहना है इनकी फ़ितरत
इन्हें रास नहीं आता ठहरना
कुम्भ को भरकर थोड़ा जो कभी ठहर जाती है
प्रबल वेग से हवाओं में
बस घुल ही जाना चाहती है।
क़ैद होना इन्हें नहीं क़बूल
पर इन्हें
अस्थि और मज्जा में शरण लेना पड़ता है
सहस्त्र नाड़ियों में विचरण करना पड़ता है
देह को दुरुस्त रखने के लिए ऑक्सीजन को लेना
और कार्बन डाइऑक्साइड को छोड़ना पड़ता है।
इनका आख़िरी पड़ाव है कहीं नहीं
कम या ज़्यादा टिकाऊपन की
कोई बात भी नहीं।
देह का आधार हो या
कि साँसों का व्यापार!
हम चाहे या न चाहे
करना पड़ता है स्वीकार
चलते रहने में है टिकाऊपन
चलने से ही चलता है संसार।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments