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तेरे बग़ैर
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तेरे बग़ैर
पहला वत्सर बीत चला
ज़िन्दा हैं हमारे भीतर अब भी माँ
उसकी ममता,
उसकी वो नज़रे
दुआएँ नहीं बीतीं
पंचतत्व की गोद में काया
भी उड़ चला
तेरे बग़ैर पहला वत्सर बीत चला।
लपटों की छाँव में हैं बैठे अब तक
वो ममता का दामन, दुआओं के हाथ
चिता की लपटों में मन उड़ चला
तेरे बग़ैर पहला वत्सर बीत चला।
बँटे न मन, बिखरे न तन
सबकी सुनती व सहती है माँ
रहे सलामत घर अंगना
यही विचार बस करती हैं माँ
विचारों का केन्द्र अब खत्म हो चला
तेरे बग़ैर
पहला वत्सर बीत चला।
उपस्थित नहीं हैं
फिर भी हाथों को अब भी खींचती हैं माँ
ह्यदयाकाश अब न जाने किधर चला
तेरे बग़ैर
पहला वत्सर बीत चला।
उदासी को ढंकने को
प्राणों की आहुति देने को
हर पल तत्पर रहती हैं माँ
रिश्तों के बर्फ़ को गरम करने को
अब भी ख़ुशियों का
स्वेटर बुनती है माँ
स्मृतियों के वो बेलबूटे यादों में बह चला
तेरे बग़ैर
पहला वत्सर बीत चला।
--© कामिनी मोहन पाण्डेय।
(पहला वत्सर 06 अक्तूबर, 2019)
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