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तेरे बग़ैर
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तेरे बग़ैर
पहला वत्सर बीत चला
ज़िन्दा हैं हमारे भीतर अब भी माँ
उसकी ममता,
उसकी वो नज़रे
दुआएँ नहीं बीतीं
पंचतत्व की गोद में काया
भी उड़ चला
तेरे बग़ैर पहला वत्सर बीत चला।
लपटों की छाँव में हैं बैठे अब तक
वो ममता का दामन, दुआओं के हाथ
चिता की लपटों में मन उड़ चला
तेरे बग़ैर पहला वत्सर बीत चला।
बँटे न मन, बिखरे न तन
सबकी सुनती व सहती है माँ
रहे सलामत घर अंगना
यही विचार बस करती हैं माँ
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