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सुख पारिजात के पुष्प सरीखे हैं
ज़रा-सा झोंका सह न पाता है।
जब तक आँख मूँदे रह सके
तभी तक गंध ठहर पाता है।
आँसुओं की नमी संग
दु:ख शूल बनकर धँसा रहता है।
चीख़-पुकार नहीं सुहाता
पर गूँज सुनता रहता है।
कभी-कभी सोचते-सोचते आँखों पर
बिजली का प्रकाश झिलमिलाता है।
अनुभव ऐसा जो यात्रा करते न अघाता है
पर कष्टप्रद को देख तिलमिलाता है।
मनोरम नाम है कई औषधियों के
सघन वन, निर्झर नदी तट और हिम पर्वत
सौन्दर्य इतना कि देह समाहित कर न पाता है।
सुख-दुख सहोदर है मनुष्य के
जो कुछ भी हैं जन्मा, संग विलोम लेकर है आता
काल की गति के आगे कोई ठहर न पाता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
ज़रा-सा झोंका सह न पाता है।
जब तक आँख मूँदे रह सके
तभी तक गंध ठहर पाता है।
आँसुओं की नमी संग
दु:ख शूल बनकर धँसा रहता है।
चीख़-पुकार नहीं सुहाता
पर गूँज सुनता रहता है।
कभी-कभी सोचते-सोचते आँखों पर
बिजली का प्रकाश झिलमिलाता है।
अनुभव ऐसा जो यात्रा करते न अघाता है
पर कष्टप्रद को देख तिलमिलाता है।
मनोरम नाम है कई औषधियों के
सघन वन, निर्झर नदी तट और हिम पर्वत
सौन्दर्य इतना कि देह समाहित कर न पाता है।
सुख-दुख सहोदर है मनुष्य के
जो कुछ भी हैं जन्मा, संग विलोम लेकर है आता
काल की गति के आगे कोई ठहर न पाता है।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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