"शायद"- कामिनी मोहन।'s image
Poetry1 min read

"शायद"- कामिनी मोहन।

Kamini MohanKamini Mohan September 15, 2022
Share0 Bookmarks 32118 Reads1 Likes
हक़ है नदी को समंदर के पास
इच्छानुसार लौटने का
हक़ है सब व्रत तोड़कर
प्रेम को प्रेम के व्रत में रखने का
हक़ है रात होने पर चमकते प्रकाश को भी
थककर गहरी नींद में सो जाने का।

ऐसी नींद, जिसमें सपने भी सो गए हो
अर्ज़ियाँ पोटलियों में बंद हो गए हो
फ़ुरसत में चहलक़दमी रूक गए हो
ताज़गी के रंज-ओ-ग़म मिट गए हो
हक़दारों के चेहरे पर
क़हक़हे बरस गए हो
ख़ुशी के

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts