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अपूर्ण से पूर्ण की गाथा सृजन में,
कितने ही अशक्त और आसक्त हुए।
सामने देख विकराल कंटक व्यूह,
कुछ ठिठके, कुछ आगे बढ़ गए।
बस मारा-मारा घूमता-फिरता रहा,
जीवन भर एक सिमटी परिधि के प्यार में।
अनंत की थी दूरी राह भागता ही रहा,
न मिल सका ओर-छोर केंद्र से परिधि के संसार में।
शक्ति है फिर भी असहाय समझते ही रहे,
दिल की दहलीज़ पर पाँव ठिठके ही रहे।
सीमा में बँधे रहकर खड़ी रही जो भीत,
हरण कर लिया ख़ुद बस नींव देखते ही रहे।
जान लो, नेक-अनेक मोड़ पर चलते हुए,
गिरने से बचने को हर कोई ढूँढ़ता है टेक।
विकल तन-मन की टीस दूर करने को,
कोई-कोई परिधि के बंधन देता है फेंक।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
कितने ही अशक्त और आसक्त हुए।
सामने देख विकराल कंटक व्यूह,
कुछ ठिठके, कुछ आगे बढ़ गए।
बस मारा-मारा घूमता-फिरता रहा,
जीवन भर एक सिमटी परिधि के प्यार में।
अनंत की थी दूरी राह भागता ही रहा,
न मिल सका ओर-छोर केंद्र से परिधि के संसार में।
शक्ति है फिर भी असहाय समझते ही रहे,
दिल की दहलीज़ पर पाँव ठिठके ही रहे।
सीमा में बँधे रहकर खड़ी रही जो भीत,
हरण कर लिया ख़ुद बस नींव देखते ही रहे।
जान लो, नेक-अनेक मोड़ पर चलते हुए,
गिरने से बचने को हर कोई ढूँढ़ता है टेक।
विकल तन-मन की टीस दूर करने को,
कोई-कोई परिधि के बंधन देता है फेंक।
- © कामिनी मोहन पाण्डेय।
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