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मरूस्थल में चाँद आता है,
दुधिया रूप कण-कण पर लहराता है।
रात में झलकती जल-सी ढरकती,
सवेरा सब छिपाए नया रुप पाता है।
हम भी तुम भी तपकर सिरहाने रख लें,
चहुँओर फैलकर जो मेड़ बन जाता है।
गूँथे हैं जो हवाओं ने बिखरे नहीं,
उस प्रेम में सरल मन गुनगुनाता है।
जब रात का ओढ़े लिबास नया रूप धरते हैं
उन्मत्त तमन्नाओं का फूल खिलकर मुस्कुराता है।
सँवरते हैं निखरते हैं अंधेरा छुप ही जाता है,
चलो उठो द
दुधिया रूप कण-कण पर लहराता है।
रात में झलकती जल-सी ढरकती,
सवेरा सब छिपाए नया रुप पाता है।
हम भी तुम भी तपकर सिरहाने रख लें,
चहुँओर फैलकर जो मेड़ बन जाता है।
गूँथे हैं जो हवाओं ने बिखरे नहीं,
उस प्रेम में सरल मन गुनगुनाता है।
जब रात का ओढ़े लिबास नया रूप धरते हैं
उन्मत्त तमन्नाओं का फूल खिलकर मुस्कुराता है।
सँवरते हैं निखरते हैं अंधेरा छुप ही जाता है,
चलो उठो द
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