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क़तरा-क़तरा पिघला है चाँद अम्बर के हाथों में
प्रकृति में रस-रंग बिखरे हैं रात के सन्नाटों में।
चाँदी-सी चादर ओढ़े हैं तैरते-फिरते तारों ने
एक पहर बीता है काली-सी अंधियारों में।
भोर से पहले कोरे होंठों पर टप
प्रकृति में रस-रंग बिखरे हैं रात के सन्नाटों में।
चाँदी-सी चादर ओढ़े हैं तैरते-फिरते तारों ने
एक पहर बीता है काली-सी अंधियारों में।
भोर से पहले कोरे होंठों पर टप
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